Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 284
________________ १५. ६३. ३: 'नीले चितुर स उज्जल कास्त्र' का अर्य किया गया है, 'उज्वल एवं नील वर्ण को रोमावलि थो' । 'रोमालि' उज्ज्वल बर्ण का किसी भी तरुणी की नहीं हो सकती है । प्रर्य संभवत: होगा, 'उसके चिकुर (केश-पाश) नीले (गम; ६, और साक्षा (कोटि पर की फै।) सज्वल [वर्ण की] थी' । किन्तु तीसरे और चौथे दोनों चरणों के तुक में 'काख' है, इसलिये असम्भव नही कि 'काख' दोनों में से एक चरण में स्मृति-भ्रम से पा गया हो, पाठ कुछ और रहा हो। *६. १०६. ४: 'अन्दन सिंचि लइ उदंग' का अर्थ किया गया है, उसे चंदन से सींच कर सरेत कराया गया । होना चाहिये, उसे (उस चित्रपट को) चादम से सिक्तकर [विमसमती मे] क्रोड (गोद) में ले लिया। १७. १२२. ४: 'चंपापुरिहि पइठ' का अर्थ किया गया है, 'चम्पापुरी की ओर चले', किन्तु होना चाहिए 'चंपापुरी में प्रविष्ट हुए । *. १२३, ३: 'भउ हाल कल्लोलु' मा मर्य किया गया है 'शोरगुल एवं प्रसन्नता छा गयी', जबकि होना चाहिये 'हल्ल (तुमुल शब्दों) का कल्लोल (तरंगोल्लास) सा हुआ। *. १२६, ३: 'समदी विमलमप्ती दिललाई' का 'कुमारी विमल मती को विसखते हुये विदा किया'-पर्ष देते हुये अन्य अर्थ के रूप में दिया गया है। 'समधी (माही) बिलखती हुई विमलमती को', ओ कि संभव नहीं है, क्योंकि 'समदी' समधी' से भिन्न शब्द है, और दोनों में से किसी शब्द का मी प्रथ 'च्याही नहीं होता है। १०. १२८, ३: 'माइ कुमारी' का अर्थ वि.मा गया है ‘कुमारी मा रही है, किन्तु 'रिमलमती' उस समय कुमारी नहीं, विवाहिता और जिनदत्त की परती थी और उसका 'जुए के समय वहाँ उपस्थित रहना' पाठसिद्ध भी नहीं है । अतः 'बाद कुमारी' का अर्थ सम्भवतः होगा, 'क्यार की [जुमा खेलने की] फसल प्रागई है।

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