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*२४. २२८. २: 'कामुतार कहाहि' का अर्थ किया गया है, जिससे कौनसा पुत्र नर कहा जायगा' । पाठ त्रुटित है, अवशिष्ट शब्दों का मर्य होना चाहिये कदाचित् 'तू किसीका... कहलाए।'
२५. २४६. ४: 'बहु रोवहि अरु धीमहि नयागु' का अधं किया गया है, 'तुम बहुत्त रो रही हो, अव नेत्रों को पर्य दो' किन्तु होना कदाचित् चाहिये, 'तुम बहुत रो, पौर नेवों को बरबाद कर रही हो ।'
२६. २५०. १: 'रहिल उन ठाउ (नठाउ) का अर्थ नहीं किया गया है । मर्थ होगा सभी कुछ नष्ट हो (?) गया था।'
*२७. २५५ ४: 'पाय लागि जिगदत संभालि' कार्य किया गया है 'उसके (विमल यती) चरणों में लगकर जिनदत्त को पुकारा', जबकि प्रसंग-सम्मत अर्थ होना चाहिये, 'उसने [भिनेन्द्र के] चरणों से लगकर जिनदत्त को सस्वर] स्मरण किया। *२८, २५६.४, ३६२.१, ३६५.४: 'मविय' का अर्थ 'भव्य' किया गया है, जब कि होना चाहिये । मविक = मुमुक्षु । (दे० छंद २५७.३, ४३६.२)
*२६. २६५.२: 'पाबहु प्रन न मारउ बोलु' का अर्थ किया गया है 'ग्रामो, मारने के बोल मत बोलो' किन्तु होना चाहिये, 'ग्रामो, पान मैं बोल न मारूगा (झुरी मारूंगा),
३०. २६५.३: 'तौ न मुणसु जो ग्रेसी कर' का मर्म किया गया है, 'जो ऐसा नहीं करेगा', होना चाहिये, 'तो मैं मनुष्य नहीं, यदि मैं ऐसा करू (केवल बोल मारू)
३१. २६८,३: 'णं सुरेन्द्र जो प्रापिउ सुरहं' का अर्ध किया गया है, मानों इन्द्र ने ही वहाँ स्वर्ग की स्थापना को हो', किन्तु होना चाहिये, 'मानों वह सुरेन्द्र है जो [उस पद पर] देवतानों द्वारा स्थापित किया गया हो ।' *३२ २.७१.४: 'प्रचामउ सुप्तमउरुव मुरारि' का अर्थ नहीं किया गया