Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 286
________________ १८६२: गए बिलावल कइ पद्म पसारि - जिसमें पद्द पकार' न हो कर पाठ 'पइसारि' होना चाहिये का अर्थ किया गया है 'वे बिलास तक चलते गये, किन्तु अर्थ होगा 'वे वेलाकुल (बन्दरगाह) के प्रवेश [ द्वार ] पर पहुँच गए। १८. १८६. ३: 'वलद महिष सबुदइ निरु करहिं है, उन्होंने बैलों श्रोर मैसों को दूसरों को दिया बैल और भैसे निश्चय ही शब्द करते थे । *१६. १६३. ४) 'सुरु सेतु दीसद गु धरणं' का अर्थ किया गया है, अनन्त जल ही जल चारों ओर दिखाई पड़ता था, किन्तु होना चाहिये, [ वहां ] अन्तहीन [सा ] तुरा-सेतु ( उन्हें] दिखाई पड़ रहा था [जिस छोड़ते हुवे ] | का श्रर्थ किया गया होग २०. १६६. १-२ : 'परणसइ णु जलु जिरणवरु नाहु, भव अंतर दीजि जलवाहु' का अर्थ किया गया है, 'वहाँ जल के मध्य जिन चैत्यालय था तथा वहाँ उन्होंने भव से पार करने वाले जिनेन्द्र भगवान के दर्शन किये, जबकि होना कदाचित् चाहिये, [उन्होंने जिनेन्द्र भगवान से निवेदन किया ], 'हे जिनेन्द्र नाथ, हमारा धन जल में प्रष्ठ होना चाहता है, क्योंकि हमें मय ( समृद्धि ? ) में जलवाह ( जल-जंतु विशेष ) दिखाई पड़ा है।' २१. २१२.२० 'आहू sि उद्धसे जिहादत्त' का अर्थ पाठ त्रुटित होने के कारण नहीं दिया गया है, किन्तु तत्सूचक कोई सकेत होना चाहिये था । 'उनसे' 'उद्ध्वस्त हो गए' अथवा 'उद्ध्वस्थ थे' है । २२. २२१. ४: मिठिया कि ग्रण वाराहि हलहि' में 'भण वाराहि ' का अर्थ नहीं किया गया है, 'श्रण वाराहि' है 'बिना बाणों के' । * २३. २२५.२, ३६५. ३: 'म' का अर्थ मुंडी (मुंड) किया गया है, जब कि होना पहिये 'मृतक' मुर्दा, [मनुष्य का ] राव। ४ = 1 ·

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