Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 288
________________ शब्दावली क्यों की ज्यों अर्थ में भी दुहरा दी गई हैं, किन्तु अर्थ होगा, 'जिसका प्रत्यद्भुत पुत्र रूप मुरारी हुआ है । ३३. २७४.३: रेह सुमई सुय पदमणि' का अर्थ तत्सम शब्दों में दुहरा मर दिया गया है- 'रेखा सुमति सुता पद्मिनी हैं, जबकि अर्थ होना चाहिये [ और ] सुमति रेखा है जो पद्मिनी कन्या है- प्रर्यात् जन्म से पश्चिमी है।' *३४. २६०.२: अर्थ में दी हुई शब्दावली 'जिससे उसका मुख चमकने लगा' का आधार मूल पाठ में नहीं है, और न इससे अर्थ में ही कोई स्पष्टता श्राई है। *३५. २१२.२ : 'मरण विति श्रयामि उपमई' का अर्थ किया गया है, वह पास धागई', किन्तु होना चाहिये, 'मन द्वारा चिन्नित होते ही वह श्राकाश में [ जहाँ जिनदस था ] उत्पतित हो गई ( उड या उठ घाई'। * ३६. २६८.३: त्रिष्ण वित्रितहु वेग हो' का कोई अर्थ नहीं किया गया है. होना चाहिए उस विश (जिएस) ने [ विमान पर चढ़ने पर ] विवि वेग ग्रहण किया *३७. ३०१.१, ४१५.१: 'अघाई' का अर्थ 'थक कर' और 'अपार' किया गया है, जबकि होना चाहिये, 'तृप्त होकर' और 'भर-पेट' (दे० ५०४.४) I ३८. ३०४.१: 'सती तिरी ते नाह सुजारण' का अर्थ किया गया है, 'ससी वह है जो ( श्रपने ) सुजान (नाथ) के सामने (अपना) अस्तित्व मिटा दें, जब कि होना चाहिये, 'सती स्त्री अपने स्वामी को [ ही ] जानती है ।" किया गया है, किन्तु न २६. ३२२१: 'इति' का अर्थ 'खीझकर चाहिये भटिति शीघ्र हो' । ४४०. ३२६.४: 'जिरणदत्त भगति नारि मइ दि' का अर्थ किया गया है, 'नारी ( विवाह योग्य स्त्री) को मुझे बताइए किन्तु होना चाहिये जिसे जिरादस कहा जाता है, उसकी नारियों पत्तियों) की मैंने देखा है ।'

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