Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 285
________________ ११. १५६. ४: 'हाइ बाइ गुसइ सहि छाडि कति गयउ कंत मोहि' के 'हाइ वाइ गुसइ सहि' का प्रर्य नहीं किया गया है, जो कि सम्भवतः होना चाहिए 'हाय बाई (मा), गुस्से के साथ-'। केवल दो स्थानों पर कवि ने फारसी-अरबी शब्दों का प्रयोग किया है और उनमें से एक यह है। *१२, १६६. २: 'प्रन पर परितहि दीनउ मोगु' का अर्थ किया गया है, 'उस पर (गंधोधक) पड़ते ही मोग में रखने योग्य हो गया', जब कि होना चाहिए उस (अशोक) ने अन्य स्वमान में परकर भोग (फले मूसा) दिये। ७१३. १७०. २: "तिन्हई हार पदोले (पटोले) किए' का मर्य किया गया है। 'उन्हें अब हरे एवं मजबूत कर दिये', किन्तु होना चाहिये, 'उन मालिपरों ने भी' जैसे रमरिंगयां हागे तथा पटालों-रेशमी वस्त्रों से करती है, [प्रसन्न होकर] हार-पटोल किये (पुष्पपत्रादि से अपना अलंकरण किया। १४. १८२.२: 'ते वाखर मरि चले यहूत' का अर्थ किया गया है, 'वे मी अपना सामान वाखरों में भरकर चलें' किन्तु होना चाहिये 'ये भी बहुतेरा वाखर (ऋय-विक्रय का पदार्थ) [वेष्ठनों में भरकर चले। १५. १८४, १-२: "पूतु न जाएउ बासर प्रादि, कोटि सोंग मर लइ जेवादि' अर्थ किया गया है उन्होंने वाखरों में क्या है, यह न जानते हुये भी कोडियों एवं सींगों को बैलों पर लाद लिया, किन्तु होना चाहिये, 'पूत (पुत्रजीवक-एक फल-जिसके बीजों की मालाएं बनती थीं, जो प्रायः बच्चों को स्त्रम्ध रखने के लिये पि-हाई जाती थीं) के बाखर (सौदे) का तो आदि (परिमारम) ही ज्ञात न होता था और जवादि (एक सुगंधित द्रव्य) का एक कोटि सींग (बैलों) का मार ले लिया गया। १६. १८४. ४; "दुइ वोह्य मरि वेरणा लए' का अर्थ किया गया है, 'जिममे दो जहाज भर लिए और वेणा नगर (को जाने का संकल्प लिया', किन्तु होना चाहिये, 'दो जहाजों का भार [उसने] वेणा (खस) का ले लिया' ।

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