Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 279
________________ २३६ सेव्यउ = सेवा करना - ............, सोहि = , - ६५, १०६, वा = - ३२४, सोहा : - ३८, सेष = शेष - ४५८, सोहियउ = शोमा देना - ४५, सौह = वही - ४८४, ....... आदि, सौ = - १०१, सोउ = ,, - २६६, सौवई = सोना - २२५, सोग = अशोक - २५, मोहो = सम्मुख - ३५३, सोगु = शोक - १६५, ........'आदि, संक = शंका - ३८४, सोधरली = धरना - १५३, संकट = -४८४, सोजि - उस - ९०, ......."प्रादि, संखदीउ = शंखद्वीप - ११८, सोतह = सौंन का - १८३, संगर = संग्रह - ५४८, सोतिमहि = श्रोत्रिय - ३८, संगुम = - ५१८, मोनवती - - २७७, संघ = -५०४, सोने = स्वर्ग - १३५, संघल = सिंहल - २००, सोपुरण - पुन: - १८६, संघह = संघ – ११, गोमाय = सुन्दर वचन - २७६, संघात = समूह - १५६, २५५, ४८६. सोभित - शोमित - १४१, संचिउ - संजय किया हुया - ५४, सोम ८ चन्द्रमा - १३, प्रादि, संजमु - संयम - २, ५२१, सोमदत्त = सोमदत्त - १७०, संजाय = - ५३४, सोय - वही - ५८, संजुत = सहित - ४७, १०८, आदि, सोरठी = सौराष्ट्री = २७०, संजुतु = संयुक्त -- ४३७, ५२८, सोलह = १६ - २८६, प्रादि, संजूत्त = 1, - ५६, सोप = सोना - ३०१, संजोइ - संजोकर - ४१२, सोषण = स्वणं - २८२, मंत = शान्त - ३८, ........ आदि, सोवरणु = सोने में - २३२, संतापु = संताप - १३६, १३७, १४२, सोबती सोती हुई - ३१८, संति ८ - २४६, सोपन = स्वर्ण - १६, २७२, प्रादि, । संसिपाह - शांतिनाथ - ६, सोबह - सोना - ३०२, संतु = शांत होकर -- १७, सोवहि = सुशोभित होना - ६८, यादि संतुही - सतुष्ट – १५, सोवि - वह, सोना - १५४, ''प्राधि : मंदहु = सन्देह - ३८२, ... आदि, सोवंतिय = सोती हुई - ३०६, संपद = सम्पत्ति - ४८, ..... यादि, सोहइ = शोभित - ५६, ..... प्रादि । संपत्ति = थैभध – २, सोहङ = , - ३४६, : संपय = संपति - १४४,

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