Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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२३५
सुमरइ = स्मरण किया - २५४, ३३४ | सुहबर - सुख से - ५४५, सुमरणि =
-४५७, सुहवइ - समरत = स्मरण करते - २५२, । हसार -पुस्तसार - ३८, सुग =
-२७४, | महाइ = शोमा देना - ४५ ६३, प्रादि सुर = देवत्ता - १०२,५१४, | अहि - मुखी - ३६, सुरमा -
- २७२,
। सह = मुख - २४५, सुरतारि - सुरसारी - २७०, | मुडि = सूड - ३५५, सुरम - सूरत - २८०,
मुड - । - ३४६, सुरह = स्वर्ग - ३६, २६८, सदरि =
-४३०, सुरही = मुरमित - १७४, मुंदरीय = रादरी - २२३, सरा =
-१९३, सूरुर = सूखी - ३६३, ४६५, सुरु = सुर, देवता - ७, २५३, सूकी = सूखे - १६५, सुम्पाल = श्रीपाल - १८१, सूखे = , - २६०, सरेख = गुम रेखा वानी - ४६, ६५, | सूझइ = दिखाई देना - १९४, १५३, सुरेन्द्र = इन्द्र - २६८,
सूडिउ = सूडी से – ३४५, सुलखरघु = मुलक्षण – ११३, सूदु =
-१६३, सब =
-४६२, सूती = सोगई - २२५, ३४३, सुवाग सवर्ण - ४५,
सून = सूना - ३१३, सुविचार = विचारपूर्वक -- ६, सूनी = - १२६, सम्वस =
-३८, सूर = सूर्य - ३६, ........' 'मादि, सुवा = लड़की - २२०,
सूरू - ।। - १३, २६, ५५०, सुवास = सुगंधित - १६७, सूवा = तोता -६६, सुविगाल = बड़े - ४५,
। सेज = शय्या - २६६, सुब्चि = - ५२८, । सेट = - ४८, ....ग्रादि सुसर = प्रबसुर - १४६, २४४ प्रादि, | सेठि = सेठ - ४५, ४६, .....मादि सुसरु = , -- १४६, २४४, सेठिरिण = सेठानी - ५६, ....."प्रादि सुसरे - , - १५७,
सेठिपुत्र = (जिणदत्त) - २३१, मुसारि = सार - ५२३, सेतु = -१६३, सुह = सुख - १३, .......''आदि, सेयंस = श्रेयांसनाथ - ५, मुहगादे = - २७४.
- ५१४. सुड़ = सुभट - १२४,
सेबज = सेवा - २६८, सुहणाल = जातिविशेष के योद्धा-४६०/ सेवती = - १७३,
सेव

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