Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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समृद्दन = समुद्र - ३८६,
सवरण = स्वर्ण - ३८, ३६६, समृद्र = 1 - ५४५,
सवण्ड = सब के लिये – ४१, समूह = -५३,
सबद = शब्द - १२०, समेररिण = युश करना - ४७०, सवमहि = सब में - १५, सय . -५५२, ५५३, सवारयु - स्वार्थ - ३७६, सयण = सज्जन -२
सवारि = ठोक - ७३, रायल = सच - ४२,४५, ५२, प्राविसबासी = बाह्मणी - ३३२, सयं - - २१४, | सघु = सब - ११५, १२२, “भादि, सररगु =: शरण - ५, २८:.'मादि | सर्थ :- सबही – ३३४, गरा = , - १५६,
सम्व - सब - ३६, सरवर - तालाब - ३८, १०२, १७४ | सश्व - समी- २७६, सरुवरु = -९.,
सम्बल -
-३५, सरसती = - ४४०, सव्वसिद्ध = सर्वसिद्धि - २७, सरसुती = सरस्वती - १५, २६, सब्बह - सब ही - ४०२, सरावगधम्म = श्रवक-धर्म - ४४, सन् = सब - १४३, ....... धादि, सरि
- ३८, सन्चासही = सवौषधि - २८६. सरिवि =
- १२५, सच्वंग = सर्वांग – ११८, सरिस = समान -६५,
ससि = चन्द्रमा - २४, ६७, सरीर = शरीर - १००, .....'प्रादि, | ससिवयरिंग = शशिवदनी – ३०६, सरीरह - ,, - २३, १०४, ..._धारण करती है - १५, ६३, सरीरु = " -५, २०७, २०,
सह - सहन करना -- १५८, सक.प = समान - १७२,
सहकार = माम्र - १७०, सरूपु- सरूपवान - ८८, ५२६, सहजावती :
-
- १६५ सरंभ = समान -- ३५६,
सह] - शयन - ४७३, सलहहि = सराहना - ३०५, ५०३, सहले = सकल, सभी - १६६, सलयिइ =
सहस = हजार - १८६, ४५१, सल्लेहा :
-५१६, | सहसर = चन्द्र - २२१, सलोक =
-५५३, सहल - हजार - ४५१, सव = सब - ३६०, .......... आदि, सहसु- , -५५३, मवइ - सभी, सम्पूर्ण - २४, सहहि =
- ४५५, सवइग - , - ३१, सहाउ = स्वभाव-४, ६६, ४७३,५१४ मबई = म - १२,
महारत = सहारा - ३१५,

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