Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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लंपट = लंपटी - ४०३, यहि = बढ़ते थे - ४६१, लंपटह - लंपटी - १२०,
वही = ब्रहत - २६६, लंतिय = लिये - ६
वड़े = - ४६५, लंब = - ४४६.
वण - वन -- ७७, ३१२,३४७, ५३०, वग़जी -
- ५३०॥ पण =
-४४०, बद = -४६३, ५४६, अण्णा = वर्णन करना --१००, वइठ = बैठकर - १२२, ५४१, वराउ - वन करना - ४००, वहठउ = बैठी - ४२३,
वजारे = व्यापारी - १८५, वइद = बंद्य - ३५,
वामहि = वन में - ३२७, वहरा = वैजाग्य – ५१२,
वणवाल :: जनपाल - ५१३, वरिउ = वैर - २२६,
वसई = घनस्पति - ५१४, यइल्ल = दैल - १८,
वगिण -
-६५॥ वइस =
८६०, वणियः = वर्णन - ४८, १०, वइसर = वैट गया - १२६, वणिकु = महाजन - १७, बइमारत = बैठाना - ४२०, | बरिराज = व्यापार - १७, बरसारि = बैठाकर - ११०, ११६, वणिजह = वनज, व्यापर -४०, ४१५ वइमि = बैठकर - ७७, २२३, यरिगजारिन्ह =
- २४८, वउ = वपु (शरीर) - ६६ वरिणजाए = व्यापारी - १८६, १६१, यसलसिरी = - १७३, | वणियार - - ३७, वकार = 'व' से प्रारम्भ होने वाली-३७ वरिणयर = व्यापारी - १७७, १६१, वछ - वत्स – १४४, ३६२, कगित्ररु = व्यापारी - १९६, ४७२, अज्ज : बज - २
बगिवार करिव दल - २३६, वज्जणी = वज़गी - २८८, वशिद = वािकों में इन्द्र - २५४, वज्जरित - -५२२, ५.२४, !
जिनदत) वज - इन्द्र का प्रायुध - ६१३, ३२८, वणी = - ४३३, बन = - ४७७,
वण्णु = वर्ण - ६३, कड़ = - ४७६, | वत्त - यात – ६८, २२१, ३६१ वडइ = बड़ी - १४३,
यत्ति = बात - ४६५, बड़ण = गिरना – ५१२,
वनीमह -
-४३३, वडवानल = मसुद्र की प्राग - ...... यत्त = बात - २१३, बड़वार = दड़ी देर ..................
वस्य = वस्तु = ३१,

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