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________________ २२२ लंपट = लंपटी - ४०३, यहि = बढ़ते थे - ४६१, लंपटह - लंपटी - १२०, वही = ब्रहत - २६६, लंतिय = लिये - ६ वड़े = - ४६५, लंब = - ४४६. वण - वन -- ७७, ३१२,३४७, ५३०, वग़जी - - ५३०॥ पण = -४४०, बद = -४६३, ५४६, अण्णा = वर्णन करना --१००, वइठ = बैठकर - १२२, ५४१, वराउ - वन करना - ४००, वहठउ = बैठी - ४२३, वजारे = व्यापारी - १८५, वइद = बंद्य - ३५, वामहि = वन में - ३२७, वहरा = वैजाग्य – ५१२, वणवाल :: जनपाल - ५१३, वरिउ = वैर - २२६, वसई = घनस्पति - ५१४, यइल्ल = दैल - १८, वगिण - -६५॥ वइस = ८६०, वणियः = वर्णन - ४८, १०, वइसर = वैट गया - १२६, वणिकु = महाजन - १७, बइमारत = बैठाना - ४२०, | बरिराज = व्यापार - १७, बरसारि = बैठाकर - ११०, ११६, वणिजह = वनज, व्यापर -४०, ४१५ वइमि = बैठकर - ७७, २२३, यरिगजारिन्ह = - २४८, वउ = वपु (शरीर) - ६६ वरिणजाए = व्यापारी - १८६, १६१, यसलसिरी = - १७३, | वणियार - - ३७, वकार = 'व' से प्रारम्भ होने वाली-३७ वरिणयर = व्यापारी - १७७, १६१, वछ - वत्स – १४४, ३६२, कगित्ररु = व्यापारी - १९६, ४७२, अज्ज : बज - २ बगिवार करिव दल - २३६, वज्जणी = वज़गी - २८८, वशिद = वािकों में इन्द्र - २५४, वज्जरित - -५२२, ५.२४, ! जिनदत) वज - इन्द्र का प्रायुध - ६१३, ३२८, वणी = - ४३३, बन = - ४७७, वण्णु = वर्ण - ६३, कड़ = - ४७६, | वत्त - यात – ६८, २२१, ३६१ वडइ = बड़ी - १४३, यत्ति = बात - ४६५, बड़ण = गिरना – ५१२, वनीमह - -४३३, वडवानल = मसुद्र की प्राग - ...... यत्त = बात - २१३, बड़वार = दड़ी देर .................. वस्य = वस्तु = ३१,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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