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________________ २२३ बध - १३१, | बराइ = बसा हृमा - ४०, ४७, ६८, चचा = धाबा -८०, वराजी = व्यापार - ५२६, बधाक = बधाई - ८१, वसरण = सोने के लिये - २१२, २१९, वधाए - बधाधे में - ६१, ५०३, वसगु = - ४६२, वप = वपु, (शरीर) - १७, वसहि = वसना - ४२, २६७, मादि, खपू = शरीर - २३०, बसह = - २२३, वपुष्टा = बेचारा (गरोष - २६१, वलिउ - सामजिये .-२२३, चय = उम्र -५१६, वसंतपुर - नगर का नाम - ३८, ३६, यमरण = वचन - १७, २५९, आदि, | वसंतु = - ४०, नयणी = मुख वाली - २२०, वह = - २२७, २४४, वयसारि = बैठाकर - ४६, ६८, वहइ = चल रहा है - ३०, वर - सुन्दर - १४, ५३, प्रादि, वहरि = ७२ - १५, वरण = विवाह -- १०६. वहां = - १९८, वरत = डोरी - २४२, वहाद = विदा करना - ३८३, वर वर्ष - ६३, वहि = -५३४, बरस - वर्ष - ८५, ३८६. वहिल = घलाना - ४२५, वरिमिणी = वषिणी - २८८. वहिणी = बहिन - ४२४, चरसियउ :- मिखाई देना - ३२६, यहिंगयो = - ४३८. वह = पति -- ३७, २६२, २८३, अादि वहिजाउ - नष्ट हो जाय - ४३.७, बराड़ = - ३७, बहिजाउ = व्यथित - ८४, यरुणु = वरुण - १२, वहु = बहुत - १५, ३७, ..."मादि, वस्तइ = वरतने – ४१६, बहुक = बहुत - ३२०, बल = । बहुत्तइ - बहुत – ४६२, अलभिणी =वैल को रोकने वाद-२८६| वहन = बहुत - ३६१, वलद - ईल - १८६, | बहुफनु = अधिक फल - 5, चलि - शोभित - २६७, ३५३, बहरूपिणो = अनेक रूपों को बनाने अलिचंड = बलवान - ३६८, वाली - २८६, वलियाउ = श्रीहित, लज्जित - ७४, वहल = बहुत - ३०२, ४४३, ५०४, वलुवलु = सेना - ४११, बहुलकु = - १४६, वघड = बोदे -- ४४६. बहुल वहुलु = बहुत २ -- ४४०, वस्त = वस्तु, चीप - ३३४, -४८, वस्तु 3 - १३६ वहृत = - १४६, १७८,
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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