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________________ २१८ मंत = मंत्रणा - २४४, अादि । रसिप ति = कामदेव - ५४३, मंति = मंत्री - २०५, रधनुहि - स्थनपुर - २६७, मंतिहि = मंत्रियों - ३६९, आदि, रमइ = रमने लगे - ७३, ७६, मंदर = महल - ३६, रमायरा = रामायणा - ६४, मदार = - १७४, 1 रजय = रचना करना -२५,५५०, मंदिर - प्रावास, महल - ८६, रयण : रत्न - ४१, १३४, प्रावि, मंदोदरि = मंदोदरी - २७५, रयणन - रत्न को - २६८, मंस = मांस - ३६, रमणह - -४६०, मंसु = मांस + ५१०, रपरणाई = रत्नादि - ५२३, मंत्र = मंत्रणा - ३६४, रयण्णाह = रश्नों को - २४१, मंत्री = मंत्री (सचिव) - २०३, रयरिण = रात्रि - ३०७, रयणी = रल - २३६, रमणु = रत्न - २६२ ३७३, श्रादि, रयवर = काम - ५३६, यह = यहाँ - ४३२, ......... आदि, रल्ह = 'कवि का नाम' - १५, प्रादि, यह रही - हरी होना - १६४, रविधाम - मूर्य के प्रकाश में - ३७६, यहि = -१३६. रस = -७६, यौं = इस प्रकार - १७, [ रसरण = रसना - २८८, रस = रस - २८९, रघ्या - रक्षा -११, रई - रत्री - १६८, ....... श्रादि, रहइ = -- १५१, १५, प्रदि, रजद = रौद्र - ५२२ रहणु = रहना - २५४, रखहि - -४६२, रहस - सुख - १६५, रबउ = रमना करना - १६, रहहि = रहना - २८, रचीय = - १२५, रहाव - सात्वना - ३१६, रथे - ४५७, रहि = -४६१, रजउ = - १८१, रहि = उरखा - २७, ....... 'आदि, उइ = रुदन - १५५, रहिय = रहना -- २५८, .....'आदि, रडिया = रोने लगी - १५४, रही = रहना -- ३३१, ..... प्रादि, ररिंग = युद्ध में - ५३६, रहे म्हु = नप रहो -२१५, २३०, २६६ - ४८०, रहे = रहना - १७०, ३४८, मादि, रतन = - १३५, रा:- राजा - १६२, ...... ..मादि, रणु =
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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