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बौने के
और आप हृप्पा सेठ बन गया। उसकी दी हुई पटोली (रेशमी साड़ी) को लेकर वे स्त्रियां प्रति प्रसन्न हुई और ( उसके साथ में ) ( स्वर्ण से ) ई ११५
प्राकर तीनों ही
में
[ ४१२-४१३ ]
फलेक होइ ।
दुख हरी ||
मांडे दूध नियात संजोय, घिव लापसी केला दाख छुहारी खीर खां बिरोजी नितु बडिव जिरसोरा बहु लाज, विलसहि राणी जहसे राज । फूल संयोल कपूर बहुत भइसो भोग करावद भूत ||
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प्रर्थ :- उन्होंने दूध और नवनीत संजोकर मांडे तथा घी और लापसी का कलेवा होने लगा । केला, दाख, छुहारा, खीर, खांड़ घोर चिरौंजी नित्य दुख हरने लगे । दाडिम, विजौरा आदि बहुतेरे खाद्य से 'भाँति ने विलसने लगे । फूल, पान, कर्पूर आदि का बहुत उपभोग कराने लगा ।।४१२ - ४१३०
१. मूल पाठ - व
राणी और राजा की इस प्रकार वह पूर्त
[ ४१४ - ४१५ ]
घाटि कोवई जले जुगात छाडी हप्पा सेठि की बात जिरग चाहुडि भावइ करतार सभ शुखु पुरए ए सु असार । तह दीम्यो वस्तु बधाई, राजा फुल वालउ अपनाई । रिस विगि दह वणिजह गए, परं बेटा बेटो
भए ।
[ कोदच ] [ खाने
अर्थ :- किन्तु घाटो ( अथवा घटिया) और कोई से ] उनका गात्र जल गया तो उन्होंने हप्पर से की बात छोड़ दी। स्त्रियां कहने लगी. "हे भगवान हमारा भर्त्तार वापस न थाए, यही हमारा भतार है क्योंकि इसने हमारे लिए सब सुख पूरे कर दिये हैं ।।४१४ ॥