Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 249
________________ परिमंडल = शत्रुदल- ४६७, पवरण = पवन- १६२, परिमाणु = परिमाण- ३६४, पाणु = प्रमाण- ४५१, परियर : परिबन- ४७, ११०, १६४, | पनाली = ......... - १६५. परिया - पला- ४६, ३४२, पनाह = ........' - ५००, परियागिण = .............. - ५.३२. परिरस - अनुरक्त- ५४४, प्रसष् = प्रसन्न-५०६, परियाणि = प्रमाणा - ६४, पसाइ -- प्रसाद, कृपा-४६६, परिवार = - १०४, १साउ = पुरस्कार में- १६.....प्रालि परिवारह - ......" - ५१३, ५१५, पमारत - प्रसार करता हूँ-१२, परिवारहं = कुटुम्ब- ४५, पसारि - फैलाफर- १.०, १६, परिवारु = परिवार- ४०३, परिसिउ - ......... - ४९१, । मगि = प्रसंग- २८, परिसिव = स्पर्श कर- ११६, पसंम् - प्रशसा ५०, परिहर = छोड़ा- ११७, । पहर - - २६६, परिहरहि = दुर करते हैं- १६६ । पहरण = कपड़े- २१८, परिहरि = परित्याग कर- ५०, १५८, [ पहरिया: = पहममा- २१, परिहसु = परिहास - १५६, ३६३, पहरु . पहर- २१५, ३०१, ३५६, ३७४. ४.६, पहाण :- पत्थर, प्रशंसा-- ६६२. परिहारि = प्रसोहारी- ४६५, पहार हि = प्रहार- ३५५, परीछा - परीक्षा- १८७, पहाँ = पास- १३२, परीति प्रीति- ४४३।। पहि - 4- ३१६ परु = ............ - ४२६॥ | पहियह - पथिक- ३३. पस्तमु = किंतु उसे- ४७३, पहिया = पविका- ३३. परोहा - जहाज- १८६, ..... आदि पहिरः . . पहिने हूये- ६E, २०३, पसंगरु = परम्परा- ३६६ २११, २१२, २२३, ९२४, २२५ पल इ = प्रलय- ४४०, पहिरउ = पहरा- २०५, २२६, ३.., पलाइ - भागमा- २३०, पलाणी - पलागा- १२१५ पहिार - पहिन कर- ११२, पलारण = भागनः-४५३, पहिला - पलारि = पलाना (भागना)- ३८६, | पहिलउ = पहला- ३००, पलाय = प्रलाप- १५५, पहिले = - ४४४, पता = , - २७७, । पहु = प्रम, पर-६, १५४, ३२५,

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