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जिरायत्त चरित
जिणदत्त गहिवरु प्रायो हियउ, बीउ मा वा विलखिय |
उठित पीष लोटरी कराई, चार
सिरिया लागहि पाई ॥
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अर्थ :- तब सेठानी ने सत्य भाव से कहा, "यदि है प्रभु 1 अम ( आपकी ) कृपा हो जाए। तो है देव! हम कुछ निम्त जाने ( कहें) क्योंकि तुम्हारे ही ऐसा हमारा पुत्र था ।।४६७।।
जिनदत्त का हृदय पुलकित हो उठा और माँ बाप को देखकर वह रो पड़ा । वह उठकर उनके पांवों में लोटने लगा तथा उसकी चारों स्त्रियां मी उनके चरणों में लग गई ||४६८११
[ ४६६-५०० !
जरपणी खण रामि प्रकंतु पाय पखालित परिसिउ अंगु । विर बोल साहस धीर, क्षत्र महू सुद्धउ भयउ सरीर ।, सेठिणि गवरि प्राय हियउ, पुणु श्राप एउ उगह लियउ । जायो पूतु प्राज सुपियार, खोर पवाह बहे थरण हार ।।
अर्थ :- उसने माता के चरणों में साष्टांग नमस्कार किया तथा पाँवों को पवार (धो कर ( उसके अंगों का स्पर्श किया। साहसी जीवदंब बोला,
1.
'अब मेरा शरीर शुद्ध हो गया
२४६६।।
मेठानी का हृदय भी मर आया, फिर उसने उसे अपनी गोद में लिया और कहा हे प्रिय ! मानों तुम साज ही पैदा हुये हो और यह कहते हुये उसके भारी स्तनों से दूध की धारा बह निकली ||१०|
पियार ८. प्रिय + तर ।
। ५०१ - ५०२ ĭ
मेरे जिदत्त पूरिय
प्रास, तुझ विश पूत भई ब्रु गिरास ।
खरं कुयापहि ना वीसरद्र, अनु दिनु जिहादत्त निरगवत्तु करड ॥