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जित्त चरित
गृहस्थ जीवन
[ ५०५ - ५०६
I
संबसियर र जिरायत्त राय, एक चित (तुख) ' रहिय सरीर, विमलमती सुर विमलु उपण्णु सुप्पहु महा घुसतो, ए लाए हरू सिरियामतो ||
राजु करह वसंतपुरु ठा परिक्षा पास वोट वीर ॥ एकु सुवसु जयबस पसणु ।
श्रर्थः राजा चंद्रशेखर एवं जिनदत्त दोनों बसंतपुर में राज्य करने लगे। दोनों एक चित्त दो शरीर होकर रहने लगे और दोनों वीर प्रजा का पालन करने लगे । ५०५ ॥
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विमलमती से सुन्दर पुत्र उत्पन हुए: एक सुदत्त एवं दूसरा श्रीमती पती उत्पन हुए ॥ ५०६ ॥
१ मूल पाठ - "देख"
[ ५०७ - ५०८ 1
भोगहि परठइ, नीत परणीत सतीस भए । साहू, तर करि लहिड सग्गवर ठाउ ॥
करहि राजु जोवंजसा जीवदेख
विज्जाहरि नायज सुक्के, प्ररु जयकेतु सु गरुडकेउ I सुमितु जयमित्त ममभावसी, वबिरामि भयो विमलासती ।।
अर्थ :-- ( जिनदत्त ) राज्य करते हुए भोगों में प्रस्थापित हो गये । और नित्य प्रति उनमें सतृष्य होते गये। जीवंजसा और जीवदेव साहू ने सप करके किया ||५०७ ।।
( उसके माता एवं पिता ) श्रेष्ट स्वर्ग में स्थान प्राप्त
विद्याधरी स्त्री से सुकेतु, जयकेतु एवं गरुञ्जकेतु उत्पन्न हुवे तथा