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जिरपदत्त पूरी भई सहस्र सलोक बिझ
समत
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I ५५३ ]
चउपही, छप्पन हीराव छहलय कही ।
सय रहिय, गंथ पमाणु रासिह कहि ||
अर्थः
जिनदत्त चौपई छः सौ में से छप्पन कम (५४४) चौपई में पूरी की गईं। रार्यासह कवि कहता है कि ग्रन्थ का प्रमाण एक हजार
श्लोक प्रमार है ॥५५३
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इति जिरगवत चउप संपूर्ण
संवत् १७५२ वर्षे कतिक शुद्धि ५ शुक्रवासरे लिखतं महानंद पालवं निवासी पुष्करमलात्मज ।
यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा तावृशं लिखितं मया ।
यद् शुद्ध मधुख वा मम दोषो न दीयते ।। १ ।।
शुभं भवेत् लेखकाध्यापकयोः । श्रीरस्तु । पंचमीव्रतोपमनिमित्त
शुभं ।