Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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नियमाणु = निश्चित मन में - ५४, ! निसि = रात्रि - २०३, नियाण = मिदान - २६३, ४८० | मोज - १५, नियरु - निश्चय -- ३४६, निसुरण = सुनो - ११६, २६१, नियंबहिण = नितंचिनी - ५४३.. निसुरहि = सुनो - ८५, ४४४., निरकरइ = निश्चय रूप से करना - निसुरगाह - सुनकर - ३६५,
निसुनहि = सुनो - १०८, निरखहि = देखना - ४३१, निसंगु = निःशंक - २३२, निरखे = धेखे – ३५३,
निमुभहु = मार डालना - ४५४, निरमंतु = -५१८, निहर्ष : निश्चय से - १६७, निरखाली = उलझने वास्त्री - ३३६, | निहाणु - निधान - २६२, २८,
३४१, ३४३, | नीकउ = अच्छा - १११, १५०, निरनासु - न रहने योग्य – ३४७,
२६४, २६५, ...... प्रापि, निविस = विप रहित - ........... | नीकी = अच्छी - २२४, निगालउ - - ४७६
.४७३ नीकी - प्रच्छा - ११२. नि: = निश्चित ही - १८, ५२, ५३, | मीत - - ५०७,
६,१८६.......''आदि, नीद - निद्रा - १६०, निरुत - - ४६७, नींदउ - निन्दा करना -२१६, निरुत्त = -५५१, नीर = पानी – १६४, निरुमासि = मामास - ५४२,
नीर = नीर-पानी - ३६८, निरहज - उदासीन - ५४०, नीरह = जल में - ३४१, निलउ = - ४८६, : नीलामणि = -४४५, निवड = व्यतीत होना - २२३, नीले = नीले वर्ण वाले - ६३, निवसइ = रहना - ४६,
नीव = नींबू - १६६, निवा] = निदान - ३५४, नीसरह - निवली - २००, २२६, निव्वाणु - - ५५१, निवात = नवनीत - ४१२, नीसरयो = निकला – १६६, निबारह = दूर करना -२०६, नीसरिउ = गये - १६७, निवारिउ = मना करना - ........... नेउर = नेवरी - ६१ निवियप्पु = निर्विकार - १४६, नेत = नेत्र, एक रेशमी कपड़ा - ४६०, निस = रात - ३१५
५०३, निसाए = निशाना - ४५३, ५०३, । नेमु = नियम - २,५२१,
५.१५, | नेवालउ = निवारिका - १७४,

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