Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 234
________________ झही - ४०३, ४०८ भंसहि = जक बक करना ३०६ । भंग - कूदना - ३७८ - ३६४, २८०, डायरी - स्थान - ६५, ठार - +२१०, २२८, ठालउ%3D बेकार - ३३६, ३४३, ठाली = बेकार - ३३६, ३४३, महरि = ठहर कर -२०१, ठाहो - -३४२, लिए - -१७०, टिय - -२६८, ठेद -- र लीय = छोड़ना - ३०७, रापुशु - -४०५, ट्रेकि - टेकना - ३४६, रेव = भारत - २११, ठड्यो = ठहरना - २६६, डगड़गारा = डगमगाना - २४३, डराहि = कए - -१३५, डर = डर - ३४६, गया = नमस्कार करने योग्य-१६, | डसण = दांत - ३४६, ३७८, रायउ = स्थापित किया - १७६,२१८, | सगी = -१७, ३२७, डहउ जलना - १३ ठवरण = - १६२, ४ही = घोषणा - ३४८, ठवस्तु = स्थान - १०४, साड़ी = डांडी - १२२, ठविरणु = लगा रहना -६८, डाहउ = कष्ट देना - २३०, ठा = स्थान - १५१, डाहु - दाह (चिसा) - २२, ठाइ = स्थान – २२, ३४, १४६, १७२, डोनारी = वृद्धा - २१५, ........ प्रादि होम = - २१७, घाउ = स्थान -६, ६१, १०३, ... डोमु = बांडाल - २१२, २३२, २३३. .....ग्रादि, डोर = डोरे - १०६, ठाट = गौरव के साथ - ३५२. डोलह = डोलना - ४०१, ठाठा = - ४४४, ४५६, होला = - १२२, ठाउ-खड़ा - २६७, डोंगर = पथरीले टीले पर्वत - ३४८, ठाढ़ = खड़ा कर दिया - ७६, डारण = स्थान - २५२, छारण = ठान कर ( निश्चय करके ) Jलइ = पिघल जाना - १०१,

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