Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 216
________________ तलई ष्म तरु = अतु - अन्त २६६ आगि = अग्नि अतेरू = अन्तःपुर - ४१८८ आदि | आगि = आगे अथइ = प्रस्त होकर २६६ भागियं अधु = अॅा २५ अब = मान आइसु ब्राउ = मंगल १६८, 11 अंबराह = अमराइया बिमाई = प्रत्रिका माता अवराउ = श्राम्रराजि अवसाद्दार = श्राए = आकुली - = — = E j BILL - = - - - ४७४, ५०३, = म्याकुल श्राखण कहना = कहना प्राखहि श्राखिय = संपूर्ण आ आइ = ५६, ८४, ११२, मावि श्राह श्ररणा = आदिनाथ तीर्थंकर- १ श्राइत = श्रीकार - ५१३ आइताई = अकिर २०५ प्रायो प्राइवि प्राइस = श्राज्ञी ३३५ आशा = प्रक्षय आगे सहकार मामके वृक्ष ५३४, - - - १६६ १२०,१२३, श्रनु आगई = श्रागम शास्त्र भागमणु आगमन — - 1 -- - - - Z - — - ७०. - १०५, ४२१ ३४ - १७५ ३२ १४ ३५७. १३४, ४५६, ३४१, ५१६, ४२३, १० १२३, १५५,३०४, ४५४ श्रायती = द्यायले यही हुई = ६६, १०१, २७७, अग्र भाग ४०१, श्रगुली आगे याचल ग्राज 5 - श्राजि = भाग को रोकने वाली- २८७ भंगुली सामने मंचल ५०० श्रीप = आप आप - - — = = आधा - - ४३४ आजु = २१२, २१३,२१६,४०७ आरण = सौगन्ध २५२,३५१,४१८, आणि = सौगन्ध लाकर - १०७,१५० आरतु आदि — = २१६,३८३, आशियउ खामा ३६५. ५८, श्रारद = मानन्द - ६२,५१५, प्रागादिउ = प्रसन्नहोना श्रादे = ५०४ आते = कवि के पिता प्रादि = १८४, भाविमाह आदिनाथ - २१६ - - आपण उ आपणी = अपनी आपण = स्वयं प्राध - प्राधा भाषौ भान = अन्य - ४२४ मानि = लाकर आनदव = भ्रानन्दित - - - - - - १३३. ४६६. - ६५ ३६६ १२ - - ३५६, ४११ २८५ अपनो २४, २०१ - २३८ २६ २६४ १७३ - अपने को - १२६ ५०० ३८० ३०८

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