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सुनि वंदना के लिए प्रस्थान
आइवि दीठे सुविरु पाइ, करि तिसुधि गिरु लागज पाद | तुम्हहिन वंदन सक्कइ करे, जर मोबू तुम्हि घालो खोइ | अर्थ :- जिनदत्त ने जब यह सुना और जान लिया कि ( उसके ) गुरू ( आए) हैं। उसने अंततः सात पेंड चलकर उन्हें नमस्कार किया। फिर आनन्द के घोंसे जमा कर परिवार सहित वह ( उनके पास ) वंदना के लिये गया ।।५१५।।
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उसने वहाँ जाकर मुनि के चरणों के दर्शन किये तथा ( मन, वचन, काय ) तीन प्रकार की शुद्धि कर उनके चरणों में वह निश्चित रूप से पड़ गया और उसने कहा, "आपको वंदना कोई नहीं कर सकता क्योंकि वृद्धावस्था एवं मृत्यु तुमने खो डाली हैं" ।।५१६||
सत्योपदेश
। ५१७-४१८ ]
पूछइ जिरगवत्तु जिरणवर धम्मु, कह (हुमु ) सीसर गालिज कम्भु |
सुगंहु, दया धम्मु वह भेय सुरोहि ।
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क्षेत्र एकु श्ररहंतु गुर निगंधु संगुम चतु, मज्ज मंधु मह चह सिरभंतु । पंचुंबर निसि भोज बद्दज्जु, लवणिज अलगालिज जलसज्जु ॥
( फिर उनसे ) जिनत ने जिनेन्द्र भगवान के धर्म के विषय में पूछा । मुनीश्वर ने कहा "कर्मो को नष्ट करो | एक परिहत देव के मानों तथा दया एवं धर्म के भेद को सुनो" ।
मुनि ने कहा निग्रंथ गुरु की सेवा करो। मंदिरा मांस मधु को निभ्रांति त्यागो | पांच उदम्बर तथा रात्रि को भोजन त्यागो | नवनीत तथा बिना छने हुए जलका प्रयोग त्यागो