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गृहस्थ जीवन
विमलासती (शृगांरमती) से गुरमित्र, अयमित्र. मन मावती तथा दविणमित्र, उत्पन्न हुये ।१५०८।।
[ ५०६-५१० ] वरिणधरु कुलि जिरणवत्त उपप्पण, पाछै राजु भयो परिपुष्ण । भविया कऊण प्रभो लोर, पुन्न फलह कि कि नउ होउ ।। जं जं पुहमिहि दीसह चंगु, तं तं धम्मह केरऽ अंगु । अं जं कि पि अशुबरु हवइ, तं ते पावह फच जिण कहा ॥
अर्थ :- जिनदत्त ने वणिक के घर जन्म लिया लेकिन पीछे वह राज्य में परिपूर्ण हुप्रा । लेकिन हे भविको! इसमें कोनसा प्राश्वयं हैं? पुण्य से क्या क्या नहीं होता (कौन कौन से फल नहीं प्राप्त होते) ? १५०६
___ जो जो पृथ्वी पर सुन्दर दिखता है, वह वह धर्म का अंग है, और जो जो कुछ भी असुन्दर होता है, वह वह पाप का फल है- ऐमा जिनेन्द्र भगवान् का कथन है ।।५१०।।
1 ५११-५१२ ।
जिपबरु धासु निम्मु अभोर, सग्ग मोख बह कारण हो । राजभोग किर केती माति, नियम पालड्डू बहवि भाति ॥ उक्क बहरण बहराइ निमित्त, पहिलि भोय संसारह विसु । रानु देवि जिणवत्तह सल्यु, चंदसिखरु तपु लाम्यो भव ॥
मर्थ :- जिनेन्द्र मगवान का धर्म निश्छद्र और प्रभोग (भोग रहित) है इसलिये स्वर्ग मोन का भी कारण है। राज्य भोग की कितनी ही सीमा हो (कितना ही परिमाया हो) निश्चय ही भ्रांति का त्याग कर (उस धर्म का) पालन करो ॥५११॥