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जीबवेव जिनदत मिलन
तहि विसूरिउ वोलद सेठि, हर पाराहत मिरु परमेष्ठि, । निछ देउँ वेह महि मुनिउ, अजर अमर जिप प्रापमु सुरिगाउ ।।
अर्थ :-राजा कहने लगा, हे सेट तुम हरो मत । तुमको पोड़ा (दुःख) देने का हमारा कोई कार्य (प्रयोजन) नहीं है । जिसके हृदय में पंच परमेष्ठि हैं, जीवदेव सेठ तुम ऐसे हो 11४६३।।
तब सेठ बिसूर कर (चिंता रहित होकर) बोला, "मैं तो निश्चित रूप संपंच परमेष्ठि को पाराधना करता हूँ। निश्चय ही मैं पृथ्वी के मुनियों को देय (प्रहार) देता रहा हूँ और अजर-अमर जिनागम हैं, उन्हें मैं सुनता रहा हूँ ।।४६४॥
[ ४६५-४६६ | राजनु पूनु गयउ पर तोह, तहि दुख सूकः सपत सरोर, । तुम्ह वा हमु नाही वोषु, दुल पड़े हमु पाउ मोष ।। सहि राउ बोलत हइ जारिण, एते कटक लहु पर आणि । मोहि मखतु जइ राजनु होड, इई होई तरु प्रावइ सोइ ।
अर्थ – 'हे राजन, मेरा पुत्र विदेश चला गया; उमी के दुःख से सारा शारीर सूख गया । तुम यदि मुझे बंदी करो तो इसमें हमें कोइ दुःख नहीं होगा (हमारा कुछ बिगउता नहीं है) क्योंकि दुःख को वृद्धि से तो हमें मोक्ष (छुटकारा) मिल जावेगा ।।४६५।।
तब राजा ने (यह सब) जानकर कहा, इस सारी सेना से शत्रु को जान लो । 'यदि मेरे समान कोई राजा है, तो वह नर श्रेष्ठ यहाँ क्यों नहीं वाता है। 11४६६॥
[ ४६७-४६८ ] तउ सेविरिण वोलिड सतभाउ, जा पहु प्रवहोइ पसाउ । किछ परि जागज वेड निरुत, तुम्ह अासो छौ महारउ पूतु ॥