________________
बसन्तपुर के लिये प्रस्थान
१४१
पोलि। प्रतोली --- मुख्य मार ढोकुली-गोफणी - पत्थर फेंकने के यंत्र । सीस - शीर्षक - शिरस्त्राण ।
[ ४५८-४५६ ) कोट पा.... (उ) तंग अपार, परिखा पुरिम जलह अपार । गढह सेष परिजा भाकुली, वाडा लेहि छत्तीसह कुसी ।। चंदसिखर (बो) लइ जु पधारि, राखहु गढ़ खडि को धार । अब लगु मोहि पासु बोइ बाँह, को चापिहा कोट को छांह ॥
अर्थ :-कोट के (पास?) ॐ भी प्राकार थी । परिवार (वाई) को अपार जल से भर दिया गया । शेष प्रजा गढ़ में च्याकुल पी मौर छत्तीसों कुली (जाति) के लोग बाड़ा ले रहे थे (यंदर से घरों को बंद कर रहे थे या सुरक्षित ) ।।४५८||
(वहाँ का राजा) चंद्रशेखर ललकार कर कहने लगा। मनु को रक्षा मी तलवार को घार पर करो। जब तक मेरे पास दो हाथ है तब तक कोई ( परकोटा-कला ) को छामा पर भी पैर नहीं रख सकला है । ॥४५॥
। ४६०-४६.१ 1 पूर्थ प(उलि) राइ सइ राख, परिगहु भई लोहि मसंख । दक्षिण पलि बाद सुहरणासु, जो परिमंडल दस वय कालु ।। (उत) र पसि निकुभ चंदेल, जे अगिलेह ण माहि गेल । पछिम विस जाय बना पाहि, पउतव अकुहब ........... रहि ।।
चारों दिशाओं में मोर्चा बन्दी की गई) पूर्व की पोल की रक्षा