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जिएस चरित
राजा (जिनदत्त) ने कहा, "उसे लाकर मिलायो । प्रतिहार दूत के स्थान पर गया और कहा, "राजा ने तुम पर कृपा की है । हे दूत, तुम भीतर पधारो ||४६८।।
पाहुड / . - उपहार । सीरप 1. शीघ्र
[YER 1 भीतरि व्रतु गयउ सुहिणातु, प्रापिउ परिउ रयण भरि यातु । वोठउ वृतु राउ तिहि ठाउ, देवि सीसु धरि लगिउ पाउ ।।
अर्थ :-सहिणाल (नाम का वह) दूत भीतर गया और (जिनदत्त के) आगे रत्नों का भरा हुआ थाल उसने रख दिया । दूत ने राजा को वहां देखा तो उसे विश्वास दिलाएर उसने (राजा भै) गरंगों को मार्ग कि
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वस्तु बंध दूतु पभरणइ रिणमुरण नरनाह । को परिजा गंजिया, काप देव घर पलइ कीजइ । काइ नयर चउदिहि विस रहिउ, कासु उबरि देव कोह कोजइ ।। तुम समेरणि अभिडत, सा सीमा अम्हि जिण होण । भगाइ दूस सए नरनाह, फुड लेज दंड हडू लोण ।।
दुत कहने लगा, "हे नरनाथ. मुनी । हे देव, आप क्यों प्रजा को नष्ट कर रहे हैं और किस कारण घर में प्रलय कर रहे हैं ? किस कारण नगर के चारों ओर अापने घेरा डाला है ? और किस के ऊपर हे देव! आप क्रोध कर रहे हैं ? यदि हम आपसे लड़ें तो हे स्वामी । हम जैन धर्म से विमुख होंगे। दूस ने कहा हे नर नाथ ! इसलिये में स्फुट रूप से स्पष्ट दंड लेकर घर चलिये । ।।४३०।।
पलइ। प्रलय । उरि-ऊपर