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जिरणवत्त चरित
जिसका सेठ प्रधिक विश्वास करता था। जहां सभा बैठी थी वहां सबसे बड़ी स्त्री बोली ॥४२३॥
{ ४२४-४२५ । रहिन भातु घिउ परतिषु मीठ, भान जनम वहिणी किन बोटु । हप्पा सेठि तह घालहु छार, इमु तिह सिड कहहु भत्तारु । कहिङ भतार षत निरु जबहि, हाहाकार अउछ किउ तहि । सभा सोगु हुा भोगे रहिउ, निय सामिज तिन्ह मान वहिउ ।।
अर्थ :-(इतो समय एक ने उससे कहा,) दही, भात, घो प्रत्यक्ष में मौटे हैं । अन्य जन्म हे बहिन, किसने देखा है। हपा सेठ पर राख डालो और. इस घुर्त को ही मार (स्वामी) कहो' ।।४२४॥
___ जब उसने धूतं को ही निश्चितरूप से स्वामी कहा तव दूसरी ने हाहाकार किया। सभा के लोग तब मौन हो गए और कहा, "अपने स्वामी पर तीनों ही खड़ग चलायो ।।४२।।
। ४२३-४२७ । जवाह' पर अपरंपर पुछ, रायपमुह र नाणहु भूरु । मेठि धणी रगर यह जाइसइ, णर भद दुल्लह पनि पाइसह ॥ हरतु परतु तिन्द्र घासिद्ध हारि, कभी गरद पड़ी ते नारि । झूठउ बोसि ते एरयहि गई, हम हि तिरिया समु भई ।।
अर्थ :-जक दुष्टात्रों ने परस्पर वार्ता की; तब राजा ने सब कुछ (हप्पा सेठ के वचन को) झूठा जाना । उन्होंने कहा, 'यह सेठ और सेठाणी नकं जाएंगे और दुनंभ मनुष्य जन्म पुनः नहीं पायेंगे ।।४२६।।
हरते परते उन्होने (इम दुर्लभ मानव जन्म को) हार डाला तथा