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चंपापुरी के लिये प्रस्थान
[ RES-REE ]
सो विमासा ठिय रयरणनु भरइ विजआहरिय कति सिंह विष्ण विचित्ति बेगह गहरे, चंपापुरिय रायसि चंपापुर नयरो पसारि, वाडी बेखत भई बड़ी पंथह सूरु मेरु तल गयो, पहली रात पहर इकु
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अर्थ :- पुनः रत्नों से वह विमान भर गया तथा विद्याषरी पपने कान्त ( जिदत्त) के साथ उस पर चड़ी। राजसिंह (कवि ) कहता है कि वह विमान शीघ्र ही चंपापुरी पहुँच गया ॥ २६॥
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चंपापुरी नगरी के प्रवेश मार्ग पर बाड़ी ( उद्यान ) देखते उसे बड़ी देरी हो गई। सूर्य अस्त्व होकर मेरु के तले (पीछे) चला गया तथा इस अकार (हाँ) प्रथम रात्रि का एक पहर व्यतीत हो गया म
विष्ण विज्ञ |
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जंपइ योर नरि सुनि भत्ति, पहिरे अज्जु विलवहु राति । भइ तिरिय मह लाइब रोय, पहिलउ पहिरन मेरउ देव ||
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अर्थ :- वीर जिनदत्त विद्याधरी से कहने लगा, 'हे नारी (स्त्री) शीघ्र सुनो याज की रात्रि पहरे में बिलमाश्रो ( व्यतीत करो)। श्री कहा, "मैं रुचिपूर्वक करूंगी। प्रथम पहरा हे देव, मेरा हो" ||३०० ।। भत्ति भटित - शीघ्र | सेव रोम-रुचि ।
[ ३०१-३०२ ]
सोवइ तहि जिवंत प्रघा, राउ विरउ पद भऊ परतूस पहरु वुइज आइ, जागि वीद बोल
तिहि जाइ । विहसाह ||