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जिरणदत्त चरित
अर्थ :- "मालिन से वार्ता सुनकर जो दूसरे की मृत्यु में मरने के लिये गया, जो श्मशान जाकर मुरदे को लाया । हे भव्यो, (तुम ही बताओ ) उसका हृदय कैसा होगा" ? ॥ ३६५॥
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"श्रीमती के पेट में से निकलने वाले जिसस ने समस्त लोगों का संहार कर दिया था, उस काल की (सर्प की) पूछ पकड़कर जिसने (बौन ने ) ताड़ना की ऐसे व्यक्ति का पौरुष कैसा होगा ? ॥३६६ ।।
[ ३६७-३६६ }
कर अकेलउ सायर झंप, तहि जस मगर मध्य की प गयउ पतालहि पारिज साहि, तहि की पौर कहियह काहि ॥ फोडि नीर उछलिउ बलिकंठ, पुणे पेरिय समुद्द भुजवंड हाकि विज्जाहरु सिह र भिडाइ, तिहि पौरुष कहि हिषइ हुइ वावरण त्रु सत्ती बुलाइ ऐसा मंतिह हिमइ मरिचिति विवाणु जिहु लयज लाह वीर को कैसो
समाइ ॥३
समाइ ।
हिउ ||
अर्थ :- जो अकेला समुद्र में कूद पड़ा, जहाँ मगरमच्छ वगैरह कूदतें हैं, जो जल के सहारे पाताल लोक में चला गया ऐसे ( मनुष्य के) पीसम के बारे में क्या कहा जा सकता है ?" ॥३६३||
"वह पराक्रमी जल को फाड़ कर उछल आया, फिर उसने अपनी भुजाओं से समुद्र का संतरण किया तैर कर पार किया) । विद्याधरों को ललकार कर वह उनसे भिड़ गया। ऐसे पुरुषार्थी का वल किसके हृदय में समा सकता है ?" ।।३६८ ।।
बीना होकर जिसने सतियो को बुलवा दिया और जिसकी हेला ( धाक) मंत्रियों ( ? ) के हृदय में समा गई, जिसने मन चाहा विमान प्राप्त किया, ऐसे वीर का हृदय कैसा होगा ?" ॥ ३६६॥