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बौने के रूप में
सात में प्रचम्मा ही क्या? जो ग्यारह करोड़ जुत्रा में हार गया तथा माता पिता को छोड़कर चला गया ॥३६१॥
जिसने पराक्रम (पुरुषार्थ) ऐसा पाया, उसके बल पौरुष के विषय में कितना कहा जाय । जो पत्थर की पूतली को देखकर मोहित हो गया । उस पुण्यवंत को कितनी प्रशंसा की जावे ॥३६२१॥
अछे । अक्षत - विना अंग मंग किये। भवित्र । भविक - मुक्तिगामी, मन्य जीव । परकम्म / पराक्रम ।
[ ३६३-३६४ } परिहसु लियउ विसंतर करइ, हि को हाथ मजणी चा । सकल प्रवर पहोइ जोइ, सहि किड पौरुष कइसर होह ।। फिरिउ भनेयह सागर योप, पोपी सम्परबत्त समीप । सिंहस हंसकूट देखियउ, तासु वीर को कसौ हिपत्र ।।
प्रर्थ :-जिसने खुशी के साथ परदेश गमन लिया तथा जिसने अपने हाथ से अंजनी (मुटिका) चढाई । जिसने सुखी (वाडी) हरी कर दी। ऐसे (पुरुष) का और कैसा पुरुषार्थ होगा ? ॥३६३।।
ज्ञा पापी सागरदत्त के साथ अनेक दीप समुद्रों में घूमा । जिसने सिहल एवं हंसकूट देखा, उस वीर का हृदय कैसा होगा ? ।।३६४॥
[ ३६५-३६६
मालिण तणो नास निसुरगाह, मीच पराई मरण आइ । गयो प्रसारण मडउ प्रारिणयज, ग्रहो भविया सह कसो हियड ।। सिरियामती उब (२) नीसरयो, जिरण विसहर सयस लोय हरित । कासु पूछ परि ताइ जोइ, तह कर पौरिषु कवसङ हो ।