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देई देई
एते परप घर
फ
बौने के रूप में
जाम तहि बहु
जाम
छुट्ट पट्टश्षि
रयण
बंधरण
समस्थि ।
हस्थी ॥
नारियों को बुलवा कर
अर्थ :- ( इस प्रकार ) तीनों की तीनों ही ( उनसे बातें कर ) वह गया जिससे राजा के मन में अत्यधिक कृपा पूर्ण स्नेह हुआ। वह उसे बार बार में रत्न देने लगा । उनी क्षा नगर में बसे एक हाथी खुल गया ||३४४ ।।
छोह - कृपापूर्ण स्नेह
[ ३४५ 1
मय भिभलु गउ अंकुस मोडो खंभ उपाडि बंसलि तोडि । साकल तोडि करि चकवूनि गयउ महात्रतु घरको पूतु ॥" गयउ महावत्यु रायरी जिस्म गज भूडउभऊ प्रवद्दत्थु । हउ उचरिउ जुन खूट कालू त
डिउ तोडिनु भालु ॥
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अर्थ : - वह मद् विह्वल ( हाथो ) अंकुश को मोड़ ( न मान कर ) करके, जम्भे को उपाड तथा तोड करके वह पुष्ट दांतों वाला (हाथी) चला गया। सांकल को तोड़ कर उसने चकनाचूर कर दिया तथा वह महावत घर की ओर भाग गया। महावत नगरी में जिधर गया, वहां हाथी से भयभीत होकर लोग कहने लगे, मैं ( किसी प्रकार ) उबरा ( बचा) बहू मानो काल ही खुल गया हो । सब वह विनाश करके शिर तोड़ने लगा ||३४५
ऊसल पीन पुष्ट । सुड़ मुद् - विनाश करना
वस्तु बंध [ ३४६ ]
सरण तास रसुंडु सपड़ भू भंजणु बिसमु । धरs वी धिक्कार सोट्टड, गुभु गुर्मति प्रतिलिनियरु | उरि लोग भय कालु छूट, विद्ध सह मंदिर समल तरुवरु ॥