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जिerer afte
पइरतु सायद लई विज्जाहरु लइ गय
सिंगारम
विज्जाहरु
श्राहि म श्राप
म :- तीसरे दिन सभा में उस स्थान पर आकर बोला- (तब बनि सुनो, जैसे ही वह ( सागर में ) गया, वह छोड़ दिया ( उसे देखकर ) उसको विद्याधर रयनपुर नगर
उरो चंपापुरी ले
ने कहा ) हे स्त्री ! सुनो, गया। सागर में तैरते हुये ले गए। वहाँ शृंगारमती विद्याधरी को याद कर
आया ।।३४२ |
अवसर
-
रथनपुरि |
चंपापुरी ॥
सभा
[ ३४३ ]
पूछइ तोही ।
कल मोही ।।
मी धरण बंगी बोलरण लामो बावण देखित्रि सूतो निबासूती छाडि गय तू तहि वाली (ठाली) छह निरवाली ठाउ इव घरि उ जहऊ काल्हि सु कहिउ जहा गयउ सोइ ||
छ कोइ ।
अर्थ :- यह सुनकर वह सुन्दर स्त्री बोलने लगी, "हे बोने मैं तुम से पूछती हूँ, "मुझे वह सोती हुई और निद्रा के वशीभूत देखकर छोड़ कर कहाँ चला गया ?" वह बौना कहने लगा, तू तो काली है और निरवाली ( उलझने सुलभाने वाली ) है किन्तु क्या (तेरी भांति) कोई और भी ढाला है ? अमी तो में घर जाऊँगा । मैं तुम्हें यह कल बतलाऊंगा कि वह कहां गया" ।। ३४३।।
[ ३४४ ]
सीनिज तिमिज नारी नारी बुलाईवि सा छोड़ खोह बहुलू बहुलू राजा के मन
गायक ।
भयऊ ||