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बौने के रूप में
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६ किन्तु) कोई (अन्य भी) ठाली (बेकार) है ? इस समय घर जाकर मैं पह पर ऊंगा, जहा रह फ गया ..३
[ ३४० ] दुइजद विवसी जाय वइसी कहा सो कहा । छानउ होइ जाइ सोइ वसपुर राहाइ । तहा हूं तेउ जाइ पहुंता सिंहल दीप भार । विवाही सत्तो सिरियामसी सायर माहि पगा।
अर्थ :-दूसरे दिन वह नारी जा बैठी तो वह बौना क्या कहने लगा? प्रछन्न होकर बह दसपुर में रहा और वही से भी जाकर वह मिहल द्वीए जा चढ़ा । फिर वहां श्रीमती से विवाह करके सागर के मध्य गिर गया" ॥३४०1।
सागो प्रावण नारि पियखल काही सो भयउ । यूजियि नोरन गहिर गंभीरह पुरिण करय गयउ ।। तू तुह वाली (ग्ली) छहि निरवाली कहिसहु काल सुबास । इसउ कहाई सो बुलाई गयो तुरंत ।।
अर्थ :-फिर वह विचक्षरण नारी कहने लगी, प्रागे क्या हुआ ! (मागर के) गहरे गम्भीर जल में डूबने के पश्चात् वह कहाँ मया ? (बोने ने कहा,) हे स्त्री न टाली है और निरवाली (उलझन सुलझाने वाली) है । (आगे की वार्ता मैं कल कहूँगा) । "इस प्रकार यह कह कर यह लौटकर (?) मोन ही वहां से चला गया ॥३४१॥
[ ३४२ ] तीजइ वासार वो अगसरि सिणि वाहो प्राइ । मुरिग सुरिण लिरिया मेला परिया अहा गया सोइ ।।