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________________ बौने के रूप में १०७ ६ किन्तु) कोई (अन्य भी) ठाली (बेकार) है ? इस समय घर जाकर मैं पह पर ऊंगा, जहा रह फ गया ..३ [ ३४० ] दुइजद विवसी जाय वइसी कहा सो कहा । छानउ होइ जाइ सोइ वसपुर राहाइ । तहा हूं तेउ जाइ पहुंता सिंहल दीप भार । विवाही सत्तो सिरियामसी सायर माहि पगा। अर्थ :-दूसरे दिन वह नारी जा बैठी तो वह बौना क्या कहने लगा? प्रछन्न होकर बह दसपुर में रहा और वही से भी जाकर वह मिहल द्वीए जा चढ़ा । फिर वहां श्रीमती से विवाह करके सागर के मध्य गिर गया" ॥३४०1। सागो प्रावण नारि पियखल काही सो भयउ । यूजियि नोरन गहिर गंभीरह पुरिण करय गयउ ।। तू तुह वाली (ग्ली) छहि निरवाली कहिसहु काल सुबास । इसउ कहाई सो बुलाई गयो तुरंत ।। अर्थ :-फिर वह विचक्षरण नारी कहने लगी, प्रागे क्या हुआ ! (मागर के) गहरे गम्भीर जल में डूबने के पश्चात् वह कहाँ मया ? (बोने ने कहा,) हे स्त्री न टाली है और निरवाली (उलझन सुलझाने वाली) है । (आगे की वार्ता मैं कल कहूँगा) । "इस प्रकार यह कह कर यह लौटकर (?) मोन ही वहां से चला गया ॥३४१॥ [ ३४२ ] तीजइ वासार वो अगसरि सिणि वाहो प्राइ । मुरिग सुरिण लिरिया मेला परिया अहा गया सोइ ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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