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________________ ति ( किसी ने कहा ) "कैसे पुरस्कार मिल सकता है, जब तक है देव, यह मों (इसी प्रकार ) नारियों को न हँसा दे ।" बौने ने कहा हे स्वामी ! मेरी एक बात मान लो । मैं एक-एक दिन एक-एक स्त्री को बुलाऊँगा १३३८ ॥ १०६ आह बिहारी जिरा हारिउ १० जूषह छाडि पाटणु राइ इ सती माराच द [ ३३८ ] जयकारी चालो तिन्ह को बात जिणदत्तु ॥ चंपापुरी | तिरी ॥ सषु निकल मयउ विवादणु प्रायच विमलम्मत्तो छाड गपउ अर्थ : - इस वचन के अनुसार उसने बिहारी (मन्दिर) में जाकर जिनेन्द्र की जय-जयकार की तथा उनकी वार्ता चलाई। "जुए में सब द्रश्य हार करके जिनदत्त वहाँ से निकल गया ( भागा ) । पाटण को छोड़ कर तथा रात-दिन चल करके चंपापुरी माया तथा यहां वह सती मिलती को छोड़ गया " ॥ ३२६॥ा [ ३३६ | कोलह बइठी नारी जेठी, बाडी मोही फुरसी गउ कहि तू तुतु काली छहि निरवाली ठाल इवा घरि म हउ काल कहि हउ महा गड तपग्रह पूछ तेहि । " को सोइ ॥ अर्थ :- बड़ी स्त्री जो बैठी हुई थी यह सुनकर बोली में तुम से उसके बाद की बात ) पूछती हूँ। मुझे छोड़कर फिर वह कहां गया । (बोने ने उतर दिया ) तू तो डाली है और निरवाली ( उलझनें सुलझाने वाली है।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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