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सौलह विद्याओं की प्राप्ति
परीक्षा करने के लिये मन में जिस विमान का विचार किया उसको
बुलाया ॥ २६०॥
पत्र
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पष्ण-प्राज्ञ |
हक्कारिउ - बुलाया ।
[ २९१-२३२ 1
आयउ अगमगंतु सो तित्थु जीवदेव नंदषु हइ जित्यू | विज्जा व निसुण जिदत्त, बंदि अकिमि निगमलवतु || तहि जिवत्तु तिरिय वीसमदं मरण चिति फिरि कंसर (स) बंदि जिरादेव, बंदि करिवि
पासि उपमह ।
भायो तहि खेव ।।
अर्थ :- और जगमगाता हुआ वह विमान नहीं पर भा गया जहाँ इस विद्या ने जिनदत्त से प्रार्थना लिये " ॥ २९२॥
पर वह जीवदेव का पुत्र ( जिनदत्त ) था । की "अकृत्रिम चैत्यालय की वंदना करने
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फिर जिनदत्त ने अपनी विस्मृत स्त्री को मन में विचारा तो बहु पास आ गयी । फिर कलाग पर जिनदेन की वंदना करके वापिस वहीं श्रा गया || २६२
नोट- कैलाश पर्वत भगवान् आदिनाथ का मोक्ष स्थान है ।
[ २९३ - २९४ ]
भाइ पर्यार से राजु कराहि, पुणु प्रयोग सिउ बात कराहि । समवह देवति भेटरा जाहिं, माय शत्रु अबसेर कहि || कहइ विज्जाहरु एमु करेहु, श्रषौ देखु की राजु तुम लेह | भरगइ वीर हम यह न सुहाइ, तात गवेसिज करि हज जाइ ||
अर्थ :- वे नगरी में आकर राज करने लगे । फिर उसने अशोक राज से बात की और कहा, "हे देव! तुम मुझे विदा दो तो माता तथा पिता से मिलने जाएँ। वे मेरी चिन्ता कर रहे हैं "
२६३॥