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नौने के रूप में
वाइ तिरिया कहाहे तुरंतु, हमु पुर्ण अहि तासु को कति । तिन्यो तिरिया प्रचहि ठाइ, बाहुडि कथा वोर पहि जाई ।
अर्थ :-विद्याधरी कहने लगी, हे सखी सुन, "उसने माता का नाम जीवंजसा बताया था और कहा था कि वह जीवदेव का श्रेष्ठ पुत्र है। किन्तु मह प्रिय कल मुझे सोती हुई छोड़ कर चला गया। ।।३१८।।
उन दोनों स्त्रियों ने भी उसी समय कहा. "हम मी उसो की कान्ताएं (पत्नियाँ) हैं ।" फिर दे तीनों स्त्रियां वहाँ रहने लगीं। अब लौट कर कथा का प्रसंग वीर जिनदत्त के पास जाता है ।।३१६।।
बाहुई - व्याघुट-लौटना ।
। ३२०-३२१ ] बहुफ चोख नबरो महि कियउ, पुखि बुलाइ राजा पूछिपउ । कहहि जाति कुल प्रापुरण ठाउ, पुष्णु कौतूला परिसहि घरगज ।। कहद बाप्त घठित वावरणा, हमु देव सामी वाभणा । गीत कला गुण जागहि सय्यु, महु वेउ कम्मु नाउ गंध ॥
अर्थ:-नगरी में अब उसने (जिनदत्त ने) बहुक (अनेक) चमत्कार के कार्य किए तो उसको गजा ने बुलाकर पूछा, "अपने कुल, जाति एवं स्थान को बतायो और अपने घने कौतूहल (चमत्कार) मी दिसायो" ।।१२०॥
वह धौना बैट कर कहने लगा, "हे स्वामी हम ब्राह्मण देव हैं । मैं समी गायन-वला और गुण को ज्ञानता हूँ तथा मेरा कम में नाम हे देव ! गंधर्व है" ।।३२१।।
। ३२२-३२३ ] तबहिं राउ घोला रि झत्ति, लोपहि नाउ म गोवहि जाति । सुन्न पुगु घावरिण चहि प्रयाण, तुहि तिण लोग कहइ तुम्ह पाण ।।