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किरणदत्त चरित
मन्दिर में गयी तथा उसके (विमलमती ) चरणों में लगकर उसने जिनदत्त को
पुकारा ।।२५५।।
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जब विमलमति ने पति का नाम सुना तो तुझने लगी, "हे सखी। यह जिनदत्त कौन है जिसका नाम तुम ले रहो हो ? "श्रीमती ने उसके मुख क देख कर कहा, "उसका घर वसंतपुर में है ॥ २५६ ॥
[ २५७ - २५८ }
ओमदेव नंदन
सुपिवार, सो मेरठ जिरगवत्तु मत्तारु सो तहि व्यरण ण भोधणु कर, मरण वय कररण परतिय परिहर | रहिम तिरिप ते दुख सरीर, सायद उलि साहस धीर
'—
अर्थ :- "जी जीवदेव का प्रियतर पुत्र है वही जिनस मेरा स्वामी है। वह रात्री में भोजन नहीं करता है और मन, वचन, काय से परस्त्री का स्थागी है ।। २५७ ।।
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(विमलमती ने कहा, ) "हे स्त्री (नि) तुम रुको, तुम्हारे शरीर में दृश्ख है । वह साहसी एवं धैर्यवान सागर में से ( उछल कर ) निकल आयेगा ।। ।।२५८ ।।
( वस्तु बंध )
[२५६ ।
विष सrue *हिर गंभीर ।
हि विदु उद्यलि कठखंड पुणेण लउ । कहि तुरंतु हविकउ खमरु, विहिवसेण तहि काइ सिद्ध 10 हरिवि महोहि भवियराहि, खिसुर देखि छह तहि पुण्ण फसु, बिज्जाहरि
मंजि खहेद्र | परि ।।