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जिवत चरित
२७० - २७१ F
कार्नाड गूजरि अरु मरहटी, लाडि चोडि दक्षिण
पूरविणी करवजि बंगाल, मंगाली
मी गजडी कररणा भरणी, रूपादे
उपमादे
[
तिलंग
कंचये
धली ।
भामावे मारि, प्रचाभउ सुतभउ रुष मुरारि ॥
अर्थ :- "कशडी, गूजरी, महाराष्ट्रीय, लाडी, चोली, दक्षिणी, सौराष्ट्र, पूरविनी, कन्नोजिनी, बंगालिनी, मंगाली ? सैलंगी, सुरतारी, द्रविडी, गौडी, करणा, रूपादे, कंचलदे, उपमादे, सामादे और प्रवास सुतभउ रूपमुरारी ॥। २७०-२७१ ॥
[ २७२ - २७३ }
चितरेह तहिवर सो रेख, किलरेख
भोगमति
गुरणगा सुरगा नवरस वेद, चरभावे रंभावे कांति, सुमयादेत्रि
विहस र वे
रूपसुन्दरी, पदमावती
सोरठी ।
सुरतार ॥
P
जणु सोबनू
गुणमति
प्रछ्इ
रेख ।
भरणे ॥
विलसति
सुन्दरी ।।
अर्थ :- यहां चित्त रेखा है, जो वह श्रेष्ठ रेखा बाली है, और कीर्ति रेखा है जो मानों स्वर्ण-रेखा है; नब रसों का आमन्द देने वाली गुणगा और सुरगा है और भोगमती एवं गुणमती कही जाती है । ।।२७२॥।
उरभादे एवं रंभादे हैं। जो कांतिमती हैं तथा विहसादे रानी है जो सुशोभित रहती हैं । सुभगादेवी रूपमुन्दरी पद्मावती और मदनसुन्दरी हैं । ।। २७२ - २७३ ।।
| २३४-२५५ !
जालि ।
भारोगा कन्हावे रारिण, साबलवे मुगाचे रेह सुमई सुध पवमणि भोगविलासनि हंसागमणि ||