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________________ ८८ जिवत चरित २७० - २७१ F कार्नाड गूजरि अरु मरहटी, लाडि चोडि दक्षिण पूरविणी करवजि बंगाल, मंगाली मी गजडी कररणा भरणी, रूपादे उपमादे [ तिलंग कंचये धली । भामावे मारि, प्रचाभउ सुतभउ रुष मुरारि ॥ अर्थ :- "कशडी, गूजरी, महाराष्ट्रीय, लाडी, चोली, दक्षिणी, सौराष्ट्र, पूरविनी, कन्नोजिनी, बंगालिनी, मंगाली ? सैलंगी, सुरतारी, द्रविडी, गौडी, करणा, रूपादे, कंचलदे, उपमादे, सामादे और प्रवास सुतभउ रूपमुरारी ॥। २७०-२७१ ॥ [ २७२ - २७३ } चितरेह तहिवर सो रेख, किलरेख भोगमति गुरणगा सुरगा नवरस वेद, चरभावे रंभावे कांति, सुमयादेत्रि विहस र वे रूपसुन्दरी, पदमावती सोरठी । सुरतार ॥ P जणु सोबनू गुणमति प्रछ्इ रेख । भरणे ॥ विलसति सुन्दरी ।। अर्थ :- यहां चित्त रेखा है, जो वह श्रेष्ठ रेखा बाली है, और कीर्ति रेखा है जो मानों स्वर्ण-रेखा है; नब रसों का आमन्द देने वाली गुणगा और सुरगा है और भोगमती एवं गुणमती कही जाती है । ।।२७२॥। उरभादे एवं रंभादे हैं। जो कांतिमती हैं तथा विहसादे रानी है जो सुशोभित रहती हैं । सुभगादेवी रूपमुन्दरी पद्मावती और मदनसुन्दरी हैं । ।। २७२ - २७३ ।। | २३४-२५५ ! जालि । भारोगा कन्हावे रारिण, साबलवे मुगाचे रेह सुमई सुध पवमणि भोगविलासनि हंसागमणि ||
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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