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व्यापार के लिये प्रस्थान
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अर्थ :- जो रत्नों की परीक्षा ( परख ) करते थे वे भी चले तथा जो मूल्य पदार्थ रखते थे वे भी चले। सभी व्यापारी एक स्थान पर इकट्ठे हुये तथा पन्द्रह कोश पर जा कर उन्होंने पड़ाव किया ।।१८७।।
सभी व्यापारी चतुर एवं छैले थे और बारह हजार बैलों को भर कर वे चले थे । जो मतिहीन एवं अज्ञ थे ( उन ) सब में सागरदत्त प्रमुख थे ।। १८ ।।
रयरण रत्न | परीक्षा परीक्षा, पारखी
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| १=c ]
छाडत नयर देश अंतरास, चलद महिष सबु दs निरु करहि
गए बिलावल कड पद पसारि । वाखरु सयल परोह्णु भर्राह ।
अर्थ :--नगर और देशों की दूरी को छोड़ते हुये वे बिलावल तक चलते गये उन्होंने बैलों एवं भैसों को दूसरों को दे दिया और सारा सामान जहाजों में लाद दिया ।।१८६॥
I १६०-१६१ ]
भरि जोहिथ चले निज दाइ, प्रष्णु बहुत इंगुरु चर सयलह वत्थु परोह्णु कथउ, वारस वरिस के संबल लयज || वणिजारे जल जंत६ ठांद, धुजा पताका पड़ा इरs । सुदिगर लोहे भार सोकरे, सावधान हुइ वणिवर बडे ||
अर्थ :- तदनंतर चे जहाजो को में बहुत सी अन्न एवं ईंधन उस पर ( खर्ची) लेकर सभी बस्तुओं को जलयानों में लाद दिया ।। १६० ।।
मर कर अपने स्थान को चले। साथ चढ़ा लिया। बारह वर्ष का संबल
वणिजारों को जल जंतुओं का पता था । ( जलयानों पर ) ध्वज, पताका तथा पद (हवा द्वारा ) प्रेरिल हो रहे थे । उन्होंने अपने साथ मुद्गर