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सिंहल द्वीप-वर्णन
छन्त्र होकर [छिप कर ] तथा तानवार मेमाल कर सोने लगा। उसने कहा, यदि वह पहरे में प्रावेगा तो वह वडग् से प्रकाल ही मरेगा ॥२२५॥
खाय - खड्ग - तलवार। अयाल - अकाल - अनुचित समय
[ २२६ ] एत्तहि साला गवलह झाला मुह महते नौसर । कालउ वारण विसहर वावणु तहि फौकर । हिंदइ चउपासहि वोह सहासहि कालु भमंतु । कहि गज सो पहिरउ जसु हो वारिउ खूटउ जसु कड मंतु ॥
प्रर्य :-इसी समय (उस राजकुमारी के) मुख में से एक गुरु ज्वामानिकनी और वह काला और दारुरण सपं वहाँ (द्वार पर) फुकारने लगा। वह चारों पोर घूमने लगा मानों दीर्घ काल हँसता हुना घूम रहा हो । (उसने कहा) वह पहरेदार कहाँ गया, जिसके साथ मेरा बर है, जो क्षय हो चुका है भौर जिसका अन्त (सन्निकट) है ।।२२६॥
विसहर – विषधर – मई। ग्वूट - क्षी - क्षय होना ।
भारणसु सुत्ता निदइ भुत्तउ जगह न काई । बोला बोरु सा बलबीर बह भयंगु नितु सा ।। करि कर चप्पू काल सप्पू लाग्यो (मु) बइ सु खरिण । बोरे पश्चारिवि वीनी गालिवि इव इवरण सम्भा बाल ॥
अर्थ :-यह मनुष्य (जिनदत्त) सो रहा है और निद्रायुक्त है; क्या वह (मेरा प्रागमन) नहीं जानता है ? (यह सुनकर) वह वीर पौर बलबीर कोला, "वही सर्प रोज सा जाता है।" बड़े गर्व के साथ वह काना सर्प उस