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सिंहल द्वीप-वर्णन
। २२२ । सासुन्दरि पेखि पर बोर ॥ को तुड्स पर सोय, महू कातु पुसि करणे गसिर । परहनु लायर तिरिषि प्राणि, सत्थे तुह भरि पेसियउ ।। देखि बूद्धि रोति दुहिया, एका पूतु विशाख । तिहि सुर बहुतो मरज, पइसा दिषण मा भाष ।।
अर्थ :-राज सुन्दरी जम श्रेष्ठ वीर को देख कर ( पूछ कर } बोली । इस परलोक (परदेश) में तुम कौन हो? तुम किसके पुत्र हो, और किसकी तलाश में हो ? (उसने उत्तर दिया)-सोक) परिहास के कारण मैंने सागर पार किया और एक व्यापारी-दस) में यहाँ पाकर तुम्हारे नगर में मैंन प्रवेश किया । दुखिता वृद्धा को जिसके एक ही विशाख नरम का पुत्र है, रोती देख कर उसके पुत्र के स्थान पर मैं मरूंगा, ऐमा मैंने उसे वपन दिया है ।।२२३॥
पेख - प्र-+ईक्ष – देखना। गवेसउ - गवेषगा करना - खोजना सस्थ – सार्थं -च्यापारी दत्त । म् – प्रविश्न – घुरना, पटना । दुहिया - दुःखिता।
ताहं जपई राय सुबरोय। परऐसिय पाहुणई जाहि माहि, मा तुह निवारिउ । तुष पेखि मोहिल अणण, बस हूं मई जन तुंह मु मारिज ॥ एमु भर्जतहि रल्ह कइ, गरु छाय ना माइसि । कथा एक वर वीर काह, निवडा पहिरा बासि ।।
अर्थ . तब गज मुन्धगे
राजकुमारी | कहने लगी “हे परदेशी