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गिरणवत्त चरित गउ जिणदत्त प्रवास मझारि, सहसर अथणी बोठी नारि । पातु देखि राइ को मुवा, हाय जोष्टि प्रासणु पिया ।।
अर्थ :-राजा देख कर पछताने लगा, कि "ऐसा कोर प्रोसरे (पारो) पर मरेगा। धिक्कार है जिसने ऐसी री चाल कर रखी है जितनों को देखता हूँ वह उनको (मार कर) वहां से निकाल देती है ।" ॥२२०।।
जिनदत मन के मध्य गया (वहाँ) यह (चन्द्र) बदनी स्त्री दिखाई दी । जब राजा की सुता ने उमे आते हार देखा तो हाथ जोड़ कर उससे आसन पर बैठने को कहा ।।२२१।।
सुवा - मुता
वस्तु बंध
विजय मंदिर गयो जिणदत्त । तो बिभत णिय मणह, जब जवु सुउि पालक उठियउ । जिम मुंड माणुमु गलहि, मुह मयंक बोलति ।। मिठिया कि अग वाणहि हणहि प्रवरु ण प्रावहु तुझ । भणई बीफ फूड वत्त कहि, सिरिमइ सुन्दरि तुझ ।।
अर्थ :----जिनदत्त विजय मन्दिर गया । उसे अपने मन में विस्मय किया तब वह (जिनदत्त) (यवस्थापूर्वक) पलंग को छोड़ कर अन्नग जा बैठा । जिस प्रकार मोह मनुष्य को ग्रमता है उसी प्रकार वह चन्द्र मुन्नी बोली "तुम चयों अपनी मधुरिमा से मुझे मार रहो हो, और (तुम मेरे) पास (क्यों) नहीं आ रहे हो? यह सुन कर यह धौर (जिनदत्त) कहने लगा 'श्रीमती ? सुन्दरी ! तुम म्फुट (स्पष्ट रूप से (अपनी} बात कहो" ||२२२॥
विमउ – निस्मय। जवु – बाम – व्यवस्था करना । पानक - पर्वङ्क - पलंग । म - मुधि ।