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मिणवत्त चरित
पहरा दो।" वहां एक मालिन' के एक ही पुत्र था, उसका उग लमय (उम दिन) प्रोसरा ना पड़ा था ।।२०५।।
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२०६-२०६
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फूल बिसाहरण गउ जिणवत्त, मालिरिंग का परि जाइ पस्तु । पोवा ती हिण्ड विलादाद नति बोर पद वियसाद ।। कउप कान ये रो प्रारहि, काहु काररिंग पलावे करहि । किसि कारणि दुख परहि सरोरु, बेगि कहेहि इर्ड अंपइ वीर ।।
अर्थ :-जिनदत्त फूल ऋय करने के लिये निकला और (संयोग से) मालिन के घर पहुंच गया । बुढिया हृदय से बिजख२ कर रो रही थी। तब उससे वीर जिनदत्त ने विकसित (खुलकर) कारण पूछा ॥२०६।।
परी किस लिये इस रीति से रोती हो और किस कारण प्रताप करती हो ? किस कारण शरीर का दुत्रित कर रही हो : उस वीर ने कहा, "मुझसे शीघ बहो।" ॥२०७॥
री - रोइ - रीति। पलाव - प्रलाप । जंप -जल्प - कहना।
[ २०८-२०६ । रुदन फरइ अरु जंपइ वयणु, भासू बहुत न थाकद नयणु । कहउं तामु जो दुखु प्रकहरुइ, होगह कहे कहा सुखसरइ ।। सुरण जिलयत्त फ्यंफ्य ताहि, भसी कुरी कहियर सङ्घ काहि । भालिन वातु कहा मनु सोइ, मन वुम तुझ निवारइ कोइ ।
अर्थ :- वह वृद्धा जिसके प्रास्त्रों के आँसू नहीं रुक रहे थे, रोती हुई बोली (मह दुख) मैं उसमें कहूँ जो उसे दूर कर सके । हीन (असमर्थ) से कहने से कौनसा सुख प्राप्त हो सकता है ।।२०।।