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द्यूतक्रीडा-वर्णन
कारियों ने ललकार कर उससे दाव जीत लिया। रल्हू कवि कहता है कि जुवारियों ने कहा कि हमारा इसमें कोई दोष नहीं है" और इस प्रकार जिनदत्त ग्यारह करोड़ द्रव्य वहाँ हार गया ।। १३०।।
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हारने के पश्चात् जब जिनदत्त ने घर जाना चाहा तो जुवारियों ने उसे सौग दिला दी और कहा कि यदि हमें बिना दिये घर जायोगे तो तुम जीवदेव का वध करोगे ।।१३१।।
पच्चारि
प्रचारय्-ललकारना । मूलपाठ कर
[ १३२-१३३ }
सो जिरगवत भगोटि तहां परवड जर कारवि तेरा कही यह बात बेह पश्शरय भंडारिज कोपिज भरोषा हारे चेइ सेठि सरु देख मांगि, मह भंडारहं
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भारी पहां ।
जाहू
तुरंत ॥
को ब वेह |
विलाइवी धागि |
अर्थ :- उसके पश्चात् जिनदत्त तो वहीं रुक गया और उसने एक आदमी अपने भंडारी के पास भेजा। उसने वहां जाकर सारी बात कही और कहा कि शीघ्र ही बहुमूल्य रत्नादि दो जिससे वह जावे ।। १३२ ।
भंडारी क्रांति होकर कहने लगा कि जुए में हारने वाले को कौन धन देता है ? यदि सेठ देवे तो उससे मांग करके देखलो। मैं (तो) भण्डार को प्रति में नष्ट नहीं होने दूँगा ।। १३३ ।।
। १३४ - १३५ ।
उपासु ।
जणू उठि गयउ विमति पास, जिदत्त यह पड सुरण बात नियम प्राकुलो, माफी रमा जति काचली ॥ मालिक रतन पदारथ जडी, विचि विचि होरा सोने घडी । टए पासि मुसाहल जोडि, लह हह मोलि सु ाव धन कोडि ।