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कसु
कीदृश 1
मम - वि करना ।
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जिरगदत्त चरित
दास (दाम) - लभ्य-सोने का सिक्का सेवक |
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१२८ - १२६
सुवासरण जात बिहार भई भेट पटह जुवार ।
सहि खेलु ॥
श्राइ कुमारी बोलियो बोलु, ग्रहो जिन्दवस इकु सरह, सुनौ बाउ जुवारिज धरछ ।
णं णं कार करत पवरण मनावी पूर
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हुवा थापा कु भासहि तिया ॥
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धर्य :- एक दिन पालकी में बैठ कर चैत्यालय को जाते हुए जुवारियों एवं दुराचारियों से जिनदस की) भेंट हो गयी। उन्होंने ( जिनदत्त को देखकर ) कुमारी श्रा रही है, इस प्रकार बचन कहे और फिर कहा "ग्रहो जिनदत्त ( आओ ) हम एक खेल खेलें ।। १२५ ।।
मना करते रहने पर भी वह वहां बैठ गया । और तब जुम्बारियों ने एक सूना दाव लगाया। (पासा) बेलने पर उनकी इच्छा पूरी हुई तथा व अपने-अपने को लीन अंकों वाला कहने लगे ।। १२६ ।।
तिया - पांसे की वह दलान जिसमें प्राप्त अंक ३ के हों।
द्यूतक्रीडा
१३० - १३६ |
| स्त भई जिदतहि हारि, जूबारि जीति परचारि । भाइ रेल्हमु नाहीं खोटि हारि व हारि घरि वा जारिए, बारीहरु हम विणु दीने ज घर जाहू तो तुम्ह जोबधेच
एगारह कोडि ||
अर्थ:-खेलते-खेलते जिनदत्त की हार होती गयी और ( अन्त में )
दीनी आरण |
वध कर ||