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जिरणवत्त सरित
विधात् वर्णन
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१.१४-११५.
सहि सेठि विठियउ तुरंतु, चिप्त अहिनादिन पूछइ संतु । पावत नाह न नागों बार, तिन्ह के खेमु कुसल परिवार । तिन्ह कल खेमु कुसलु सर्व काहु, अरु प्राय हमु रोपि विवाहु ॥ बाभगु भरपाई वेणि करि जोडि, अवम लिखतु किन देखह छोरि ।।
प्रथं :-तब सेठ ने (उसे) शीघ्र देखा और मन में प्रसन्न होकर शांत भाव से पूछमे लगा, "तुम्हें आने जाने में कोई देर नहीं लगी। क्या उनके परिवार में कुशल क्षेम है" ? ।।११४॥
"उनके यहाँ सब किसी को कुशल क्षेम है और में विवाह निश्चित कर पाया हूँ।" यह कह कर ब्राह्मण ने दोनों हाथ जोड़े और कहने लगा "इसके अतिरिक्त (जो कुछ उधर का रामाचार है वह) इस लेख को खोल कर क्यों नहीं देखते हो : ।।११।।
[ ११६-११७ । सउ जिरणवत्तह तय हकारि, पूछ सेठि पास वइसारि । निसुण पूत हउ अक्सउ तोहि, इकुणिक लेख वाचि किन मोहि ।। भगति गुहार कुंटव कुसलात, परम लिखी लगुरण की बात । प्रति क्वडी नयरण सुतार, दौठी सिखी विमलमति नारि ॥
अर्थ :-फिर उसने जिमदत्त को बुलाया तथा (पासमें) बिरला कर बह बात पूछने लगा पुत्र ! सुनों मैं तुमसे एक बात कहता हूँ, निपिचत रूप से इस लेख को पढ़ कर मुझे क्यों न मुना दो" ।। ११६।।
( पूत्र ने पढ़ कर कहा, ) पत्र में भक्ति, जुहारु पीर (अपने) कूटम्ब की कुशल-क्षेम लिखी है तथा उममें लग्न (विवाह) की बात भी लियो