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जिरगवत चरित
अर्थ :--मगध देश भीतर से भी सुखी और मारवान (संपन्न) वा । यह इन्द्र का चाक स्वर्ग था अथवा सुरथ का भाकेतपुर था । वह धनं धान्य एवं स्वर्ण से पूरित श्रा लया उसके सूर्य को ढकने वाले कंचे मंदिर (पर्वत) के सदृश महल थे ।
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सुहि सुखिन सुखी
साकेलपुर का एक राजा गियि
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सारु
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मारवान संपन्न |
विवि-पिहितका हुया |
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( विभिन्न जातियों के नाम )
वस्तुबंध
मुरह सुरथ
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वरिंकु वंभरण वइव बासीठ || बाढड़ बेसा वरुड यंवरा fववारी बिहार । वाणू वाह बारो वुरु बहू विहारछ जीवराहं ॥ रु बिहारि वारिठिया बुह विडह " वरियार । तह वसंतपुरि रह कई छहि वज्रवीय वकार ।।
अर्थ :- वणिक, ब्राह्मण, वैद्य, अमीठ, बर्ड बेण्या, वरुड बंदरा,
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दिवारी, विहार, वा, वाह, बारी, बुरु, बहु विहार, वरख, बरु, बिहारी,
वारिटिया तुह, बिडह वशियार रह कवि कहता है कि ये चौबीस
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प्रकार की बकार के नाम वाली जातियाँ वहां मंपुर में रहती थी ।
१. खरियार मूलपाठ |
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सूर सामीय साहु सोत्यिहि ।
सरि सरबर सावयहं सव्वल ग्रत्थि सारंग साहरणा सिक ।
सोहा सहियरण सिरिव संत सहियण समाराहं ॥