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________________ जिरगवत चरित अर्थ :--मगध देश भीतर से भी सुखी और मारवान (संपन्न) वा । यह इन्द्र का चाक स्वर्ग था अथवा सुरथ का भाकेतपुर था । वह धनं धान्य एवं स्वर्ण से पूरित श्रा लया उसके सूर्य को ढकने वाले कंचे मंदिर (पर्वत) के सदृश महल थे । १६ सुहि सुखिन सुखी साकेलपुर का एक राजा गियि - सारु ● - मारवान संपन्न | विवि-पिहितका हुया | - ( विभिन्न जातियों के नाम ) वस्तुबंध मुरह सुरथ | २७ वरिंकु वंभरण वइव बासीठ || बाढड़ बेसा वरुड यंवरा fववारी बिहार । वाणू वाह बारो वुरु बहू विहारछ जीवराहं ॥ रु बिहारि वारिठिया बुह विडह " वरियार । तह वसंतपुरि रह कई छहि वज्रवीय वकार ।। अर्थ :- वणिक, ब्राह्मण, वैद्य, अमीठ, बर्ड बेण्या, वरुड बंदरा, 1 - दिवारी, विहार, वा, वाह, बारी, बुरु, बहु विहार, वरख, बरु, बिहारी, वारिटिया तुह, बिडह वशियार रह कवि कहता है कि ये चौबीस 7 प्रकार की बकार के नाम वाली जातियाँ वहां मंपुर में रहती थी । १. खरियार मूलपाठ | I ३८ 1 सूर सामीय साहु सोत्यिहि । सरि सरबर सावयहं सव्वल ग्रत्थि सारंग साहरणा सिक । सोहा सहियरण सिरिव संत सहियण समाराहं ॥
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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