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अिमदत्त जन्म
"हे पुत्र, सुनो । मैं तुम्हें विचार फर कहता हूं। जिस नारी को तुम गुतनी के रूप में जानते हो, यदि वह रूप की राशि विद्याधरी भी हो, तो ऐसी स्यो को तुम्हारे घर में दासी के रूप में लाऊँगा ।।३।।
तंबोल .. ताम्बूल-पान । विजाहरि विद्याघरी ।
। ६४-६५ | सुत्तधारि सहयउ कराइ, किसुका रूप घरी ते नारि । कहिहि देसु मछु बहियउ प्राइ, कर कंकरस तुष देउ पसाउ ॥ निसुाह सेठि कहउ फुड सोहि बारह मरस भमत पये मोहि । फिरत देस माह चित्त पइक, नयरी एक भली मह दिढ़ ।।
प्रर्य :- उसने सूत्रधार को बुलवा लिया और उससे पूछा "नूने किस स्त्री के रूप को यह (पुतली) गढ़ी है ? उसका देश मुझसे कहो, में दधित है। मैं तुम्हें प्रसाद के रूप में कर कंकण दूंगा।
(यह सुनकर वह कहने लगा) "हे सेठ, सुनो, मैं तुमसे स्पष्ट कहता हूँ कि जब मुझे चारह वर्ष देशों में फिरते हुए हो गए। देशों में भटकते हुए मैंने ऐली एक मली नगरी देखी और वह मेरे हृदय में प्रविष्ट हो गयी" ।
वहिय - व्यथित । फर - स्फुट-पष्ट ।
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८६-६७ 1
चंपापुरी नयरो सा भरणी, धण कण कंचरण सोहद घरणरे । अंड दंड एक सोवन घडी, मंदिर दिपहि पदारथ मो॥ घरि घरि कूषा वाइ बिहार, कंचए मह जिन कोए पगार । उसम लोक वसहि सा भरी, जणु कइलस इंद को पुरी।। अर्थ :--वह पंपापुरी नगरी कहलाती थी जो धन-धान्य एवं कंचन से ।